बेटी के दुर्भागि
कुण्डलिया–
कहीं जहर के घूँट बा, कहीं धरावल आगि।
फँसरी पर झूलल कहीं, बेटी के दुर्भागि।
बेटी के दुर्भागि,बाप के पगरी नीचा।
पढल लिखल बेकार,लगल मन घींचम-घींचा।
अइसन क्रूर समाज,जनक बा आज कहर के।
सपना प्यार दुलार,पिए ऊ कहीं जहर के।
**माया शर्मा**