! ! बेटी की विदाई ! !
के आज हुआ हैं बेटी का जनम।
मेरे घर में हुआ हो लक्ष्मी का आगमन।
जैसे मेरा दिल भी चूमने लगा हो गगन।
चमन में गुल भी महकने लगे हो होके मगन।
कितने लाड प्यार से बेटी को पाला हैं।
कभी भी ना बेटी को हमने रूलाया हैं।
इसके ख्वाहिश भी हमने पूरा कराया हैं।
अपने पलकों पर बिठाकर झुला झुलाया हैं।
फिर भी बेटी अपने ही घर में,
क्यों तू चार दिन की मेहमान हैं।
दुनिया की ये कैसी रीत हैं।
फ़िर भी सबसे बड़ी तेरी ही प्रीत हैं।
तू हमारी होकर भी होती क्यों पराई हैं।
इक दिन होती तेरी घर से विदाई हैं।
इस संसार का ये कैसा रिवाज हैं?
“बाबू” माता पिता के लिए ये सबसे बडा़ तूफान हैं।
मानो धरती पे आया जैसे कोई सैलाब है।