बेटीयांँ
यहाँ से वहाँ, वहाँ से यहाँ
भागती रहती हैं,
अपनी मुस्कराहट से पुरा घर
सर पे उठा लेती हैं|
एक दुसरे के साथ लढती रहती हैं,
लेकिन फिर भी इनकी गपशप कम नहीं होती हैं|
माँ की लाडली, पापा की दुलारी,
ये बेटीयाँ तो ऐसीही होती हैं|
ये मुस्कुराना चाहती हैं तो
मुस्कुराने दो…….
दौडना चाहती हैं यहाँ वहाँ
तो दौडने दो………..
घर सर पे उठाना चाहती हैं
तो उठाने दो……..
इन्हें कभी डाँटा न करो
क्यों की न जाने कब,
ये अपनी मुस्कुराहट भुल जाती हैं,
गुमसुम सी हो जाती हैं,
ये छोटीसी कलीयाँ
न जाने कब फुल बन जाती हैं
ये बेटियाँ तो ऐसीही होती हैं………