बेटियां सगुण छन्द
सगुण छन्द
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कहे गर्भ से आज बेटी पुकार।
नही इस तरह कोख में मातु मार।
यही चाहती माँ तुम्हीं से जवाब।
बनी बेटियाँ क्यों जगत में खराब।
रहीं देश में बेटियाँ भी सुजान।
सदा आप समझो सुता-सुत समान।
करो माँ न कच्ची कली पे प्रहार।
नही इस तरह कोख में मातु मार।
मुझे दीजिये जन्म माता अनूप।
हमें देखना है जगत का स्वरूप।
सदा ले सकूँ खुशनुमा नित बहार।
हमें चाहिए आपका माँ दुलार।
न अपराध मेरा कहूँ मैं पुकार।
नही इस तरह कोख में मातु मार।
पढूँगी लिखूँगी बनूँ मैं महान।
रखूँ मैं सदा आपका तात मान।
नही आप पर मैं बनूँ मातु बोझ।
करूँ स्वयं रक्षा बनूँ एक ओज।
कि विनती यही मैं करूँ बार-बार।
नही इस तरह कोख में मातु मार।
अभिनव मिश्र “अदम्य”