” बेटियांं “
क्या होगा सुनीता की माँ… किसी तरह तो दो बेटियों की शादी अच्छे घरों में कर पाया , निशा के विवाह की चिंता हो रही है । आप इतनी चिंता मत किजिये कहते हैं लड़कियाँ अपना भाग्य ले कर आती हैं कहते हुये शैला चाय परोसने लगी ।
चाय पीते हुये बोली…सारी तैयारियां तो मैने कर ली है बस गहने और विवाह का खर्चा रह गया है ।
अरे सुनती हो सुनीता की माँ… दोनों थोड़ी देर में आती होगीं फिर तुम्हे रसोई में जाने नहीं देगीं , जल्दी से उनके मनपसंद का खाना बना कर आ जाओ । सब तैयार है कहती हुई शैला और निशा रसोई से बाहर आ गई ।
कुछ ही देर में घर बेटियों और नाती – नातिन से गुलजार था , बच्चे खाना खा कर खेलने चले गये और तीनों बेटियां माँ – पापा के साथ बात करने बैठ गईं…नीशा अपनी बड़ी दीदी सुनीता के बहुत करीब थी और सुनीता की जान भी उसमें बसती ।
छोटी आशा से बस एक साल छोटी होने से दोनों दोस्त जैसी थीं…मैं एक बात बोलूँ सुनीता ने कहा…हाँ हाँ बोल बेटा पापा ने बड़े प्यार से कहा , पापा हम दोनों की एक बात मानेगें ?
ये भी कोई पूछने की बात है हँसते हुये कहा उन्होंने…इतना सुनना था कि सुनीता ने झट अपना सूटकेस खोला और गहनों के कुछ डब्बे सामने रख दिये…ये हमारी तरफ से निशा के लिए और हाँ विवाह का खर्चा भी हम करेगीं , कसम है आप दोनों को जो मना किया । ये सुनते ही फफक पड़े माँ – बाप ।
स्वरचित एवं मौलिक
( ममता सिंह देवा , 03/06/2021 )