बेटियाँ
रक्षाबंधन के दिन मैं घर के बरामदे में बैठा हुआ था।तभी अचानक मेरी पडोसन राहुल की मम्मी दूसरी पडोसन पिंकी की मम्मी को आवाज दे रही थी, अरे पिंकी की मम्मी, जरा पिंकी को भेज देना, राहुल को राखी बांध देगी।बहुत जिद्द कर रहा है राखी बंधवाने की। उसकी अपनी सगी बहन नही है ये उसे अच्छा नही लगता।’ कुछ दिनों बाद नवरात्रे थे। फिर वही आवाज सुनाई पडी,’अरे पिंकी की मम्मी, कंजको को जिमा दिया हो तो हमारे घर भी भेज देना। क्या करें आजकल कंजके ही नहीं मिलती।’ कुछ समय बीता। एक दिन दोनों पडोसन साथ खडी बात कर रही थी। राहुल की मम्मी पिंकी की मम्मी से कह रही थी, “तुम जब पिंकी की शादी करोगे तो कन्यादान का पुण्य कमा लोगे। ये हमारे नसीब में नहीं है। अभी एक चिंता ओर है कि जब हमारा राहुल बडा होगा तो उसके लिए बहु कहाँ से लायेंगे क्योंकि दिन प्रतिदिन लडकियों की कमी होती जा रही है। हमारा घर परिवार आगे कैसे बढेगा। ” उनकी ये बातें सुनकर मैं परेशान हो जाता और सोचता कि वास्तव में बेटियों के बिना समाज अधूरा है। आजकल लोग कोख में बेटियों का कत्ल कर रहे हैं ये बहुत गलत है। ये भ्रूण हत्या बंद होनी चाहिए अन्यथा हम सबका ही अस्तित्व समाप्त हो जाएगा।
अशोक छाबडा
12082016