बेटियाँ
बेटी बचाइये!बेटी बचाइये!!
बेटी से सृष्टि चलती
नव सभ्यता पनपती
दो-दो कुलों में बनकर
दीपक की लौ चमकती
बेटी पराया धन है
मन से निकालिए। बेटी बचाइए!
बेटी से घर चहकता
आँगन भी है महकता
बेटी है गंगा -जमुना
ममता का जल है बहता
बेटे से कम न बेटी
यह बात मानिए! बेटी बचाइए!
थी लक्ष्मीबाई बेटी
थी कल्पना भी बेटी
इतिहास रच रही है
हर क्षेत्र में ही बेटी
बेटी का बाप बनकर
सम्मान पाइए!बेटी बचाइए!
बेटी अगर मरेगी
संख्या अगर घटेगी
बेटे के हित बहू फिर
बोलो कहाँ मिलेगी
संसार एक उपवन
कलियाँ खिलाइए!बेटी बचाइए!