बेटियाँ पढ़ाइये
●अनंद छंद●
आधारित गीत
शिल्प ~ [जगण, रगण, जगण, रगण + लघु गुरु]
{121 212 121 212 12}
करो प्रचार खूब बेटियाँ पढ़ाइये ।
विचार नेक आज बेटियाँ बचाइये ।।
जगे प्रभाव ज्ञान से समाज ये अभी ।
मशाल थाम के चलो रुको नहीं कभी ।।
सुझाव मानते हुऐ यहाँ बढ़ो सभी ।
बनो प्रतीक तेज आज प्रेरणा तभी ।।
स्वभाव से मुदा हिये सुता बसाइये …….
बने प्रकाश लोग मार्ग देख के चलें ।
न अन्धकार कालिमा कहीं नहीं पलें ।।
थके नहीं डटे नहीं कभी अड़ान पे ।
रुके नहीं उड़े चले सदा उड़ान पे ।।
सँवार दे जहान को इन्हें उड़ाइये ……..
बने मकान यूँ विशाल आसमान में ।
दिखा चुकी उड़ान कल्पना जहान में ।।
तमाम कल्पना नवीन बेटियाँ बनें ।
सधी हुई पढ़ी प्रवीण बेटियाँ बनें ।।
बिना पढ़ी यहाँ न बेटियाँ बनाइये ……
करे पिता व मात कर्म गाँव गाँव में ।
प्रधान पंच लें कमान धूप छाँव में ।।
करो सभी बचाव के प्रयास बेटियाँ ।
दिखा चलो मिले सही विकास बेटियाँ ।।
उदारता महान संजु रोज गाइये ……..
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संजय कौशिक “विज्ञात”
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