बेच रहे हैं देश
***** बेच रहें हैं देश (दोहवली) ******
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भगत सिंह सूली चढ़े,आज़ाद हुआ देश।
जिनके हाथों में दिया , बेच रहें हैं देश।।
देशभक्त बदनाम कर,करें देश पर राज।
हरकतें विपरीत करें,ज़रा न आएं बाज।।
बेगैरत सियासत हुई, बिगड़े बहुत तेवर।
आन-बान की शान में,बिकते रोज जेवर।।
मनसीरत मन है मरे , मर गई है सोच।
जन आगे कैसे बढ़े ,पैर – पैर पर मोच।।
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सुखविन्दर सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)