बेचारी चिड़िया
लघु कथा
बेचारी चिड़िया
एक चिड़िया प्रतिदिन मेरे आंगन में आकर दाना चुगती इधर-उधर फुदकती कुछ संगीत सुनाती और उड़ जाती । मुझे भी प्रति सुबह उसके आने की प्रतीक्षा रहती । एक दिन मैंने देखा कि वह अपने दोनों पैरों से उछल – उछल कर दाना चुग रही है । मुझे आभास हुआ था कि वह कुछ कठिनाई में है । मैंने उसके पास जाकर देखना चाहा परंतु वह डर कर उड़ गई । फिर कई दिनों तक वह मेरे आंगन में नहीं आई । मैं प्रतिदिन एक बर्तन में पानी और दाना रखती रही परंतु वह चिड़िया नहीं आई । मेरी नन्ही सी बच्ची मुझसे प्रतिदिन पूछती कि माँ वह गाने वाली चिड़िया नहीं आई । मैं उसे कोई न कोई बहाना बनाकर टाल देती । एक दिन मैं घर से बाहर टहल रही थी कि अकस्मात मेरी दृष्टि एक झाड़ी पर पड़ी वहाँ वह नन्हीं चिड़िया उल्टी लटकी मरी पड़ी थी । मैंने समीप जाकर देखा तो उसकी दोनों पैरों में बाल उलझे हुए थे जो उसके खोलने के झंझट में उसके पैरों पर घाव कर गए थे और उन्ही उलझे बालों के कारण वह झाड़ी में फंस गई थी। अधिक छटपटाने से वह झाड़ी में और उलझती गई । परंतु छूट ना पाई और मृत्यु को प्राप्त हो गई। अकस्मात मेरे मस्तिष्क में एक बिजली सी कौंध गई की जिस दिन मैंने चिड़िया के पास जाकर देखना चाहा तो वह डर से उड़ गई ।वह इसलिए कि इन्हीं इंसानों के द्वारा फैलाए गए कूड़े कचरे में जब दाना ढूंढने गई तभी उसके पैरों में बालों का जाल फंस गया इसलिए वह हम इंसानों से डर गई और मृत्यु को प्राप्त हुई ।
शिक्षा — हमें कूड़ा- कचरा सम्भाल के फैंकना चाहिए ।
इधर-उधर फैंकने से वन्य जीवों की जान जा सकती है और पर्यावरण भी प्रदूषित हो जाता है।
ललिता कश्यप सायर डोभा
जिला बिलासपुर ( हि0 प्र0)