बेङ्ग आ टिटही (मैथिली लघुकथा)
गामक एकटा ईनारमें बेङ्ग आकाश दिशि टुकुर–टुकुर तकैत रहैक ।
गामके उत्तरबारी काँत धत्ता नजिक अपन खोंता बनाके रहैवाला एक गोट टिटही– टिहिटिहि…. करैत ईनारक नजिक पहुँचैत छैक । बेङ्ग टिटहीके आबाज सुनिते– टर्र–टर्र… करै लागैत छैक ।
लोकसभ ई उभयचर आ पंक्षीके आबाज सुनि बेवास्ता करैत छलैक ।
कारण रहैक जे ई दुनूके भाषा बुझैवाला कियो नै रहैक ।
लोक अपन–अपन दिनयर्चामे व्यस्त रहैक । अगहनुवा ताल जे गामभरि पसरल रहैक ।
अए बीच, छोटसिन एक गोट ननकिरबा सेहो बेङ्ग आ टिटहीके आबाज सुनैत रहैक ।
ओ कखनों बेङ त कखनौ टिटहीके आबाज निकालैत छलयैक ।
एक गोट लालबुझकड ननकिरबाके डप्टैक कहैछ–
‘बौआ , तों कहियो बेङ्ग त कहियो टिटही जका कियैक आबाज निकालै छिहि ?’
ननकिरबा, ‘ बेङ आ टिटही किई बजैत छैक, से बुँझमाक प्रयास हम कए रहलौए ।’
लालबुझकड, ‘आई जन्मल्हा छौडा तों कोना ई दूटाके भाषा बुझबिहि ?’
ननकिरबा, ‘हौ कक्का हम बुझई छियैक ई दूटाके भाषा ।’
लालबुझकड, ‘साँच्चे रौं ? कह त किई बजैत छैक ?
ननकिरबा खिलखिलाइत छैक आ अपन दुनू टाङ्ग हावामे फिँजाके जोर सँ फँनैत छैक ।
कहैछ छैक, ‘नई बुझलह कक्का ?’
लालबुझकड, ‘नई रौ बौआ ?
ननकिरबा, ‘ बेङ कहैत छैक– बेङ्गके ऊपर देखा आकाश ईनारभरि मात्र होएत छैक । संसारों ओतबिएटा होएत छैक….।’
लालबुझकड, ‘ ओंह , आ टिटही किई कहैत छैक ?’
ननकिरबा, ‘कक्का हौं, टिटही कहैत छैक– हम आकाशके ठेकने छियैक । हम छोडि देबै त आकाश खइस पड्तै ….।’
लालबुझकड, ‘हेरौं ननकिरबा, तों त ठिके कहैत छी, ई त हमरा पहिने सँ जनितब रहयैक । ’
ननकिरबा, ‘ कक्का , जौ पहिने बुझैत छलह त हमरा सँ कियैक पुछलह ?’
लालबुझकड, ‘किछु गामक लोकसभ बेङ आ टिटहीके भूमिकामे रहैत छैक । ई बात तोरा सनक ननकिरबा सेहो बुझैत छैक– से जनितब हमरा नए रहैक । ताहिलेल पुइँछ लेलियौंहू । ’
ननकिरबा अपन स्वाभावे जिज्ञासु बनि गेल ।
ओ कहैत छैक, ‘ माने, अपना गामक किछु मनुखों बेङ्ग आ टिटही जँका होएत छैक , सेहा ने ?
‘ह त, ओकर सोच ईनारक बेङ्ग आ आकाशमें उडैयवाला टिटही जँका होइत छैक’ लालबुझकड जबाफ देलक ।
लालबुझक कनिक गम्भिर मुद्रामे पहुँच गेलाह । ओ कहै लागल, ‘शिक्षा संँ मनुखक ज्ञानक ज्योति खुजैत छैक, ओकर मनमस्तिष्क चौरगर भँ जाएत छैक , ओकर दिमाग बेङ्ग आ टिटहीके सोच सँ ऊपर उइठ जाएत छैक ।’
लालबुझक अपन धाराप्रवाह प्रवचन दए रहल छलाह । बीचमे ननकिरबा टोकैत कहलक, ‘गामक किछु मनुख पढललिखल मुर्ख कियैक भँ जाएछ छैक ?’
लालबुझक जबाफ दैत छैक, ‘शिक्षिक मनुखके पवरिस केहेन वातावरणमे भेलैयक अछि, तेहने ओकर सोच आ बिचार भँ जाएत छैक । सही आ गलतमें अई तहरक मनुख फराक नए बुझैछ ।’
ननकिरबाके इस्कुल जेबाक समय भए जाएत छैक । ओ दरबर मारैत घर दिशि परा जाएछ । लालबुझक ओई ननकिरबाक तिक्ष्ण बुद्धि पर अपन जिभ अपने दाँत सँ कटैत गन्तव्य दिशि चल जाएत छैक ।
#दिनेश यादव
काठमाडौं (नेपाल)