बेख़ौफ़ क़लम
कुछ ऐसे मंज़र आज-कल सामने हैं
थाम कर कलम हम मोर्चे पर तने हैं…
(१)
देश की बागडोर जिन्हें दी गई थी
हाय, उन्हीं के हाथ लहू में सने हैं…
(२)
चाहे जो काम कोई करा ले इनसे
गुलामी के लिए ही ये लोग बने हैं…
(३)
तेज़ाबी बारिश की जिनसे आशंका
ज़रा देखो वे बादल कितने घने हैं…
(४)
शेखर की शायरी से थोड़ा सबक लें
वे शायर जो बैठे हुए अनमने हैं…
(५)
यहां घोड़ों को घास भी मयस्सर नहीं
लेकिन गदहों के लिए गुड़ और चने हैं…
#Geetkar
Shekhar Chandra Mitra
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