“बेखबर हम और नादान तुम ” अध्याय -3 “मन और मस्तिष्क का अंतरद्वंद”
मन और मस्तिष्क का अंतरद्वंद एक जटिल और गूढ़ विषय है, जो मानव अस्तित्व और उसकी भावनात्मक तथा बौद्धिक सोच के बीच गहरा संबंध दर्शाता है। मन हमारी भावनाओं, इच्छाओं और अनुभवों का केंद्र है, जो हमें कल्पनाशील और संवेदनशील बनाता है। दूसरी ओर, मस्तिष्क एक तर्कसंगत और वैज्ञानिक उपकरण की तरह कार्य करता है, जो निर्णय लेने और समस्याओं को हल करने में सहायक होता है।
जब किसी समस्या का सामना होता है, तो अक्सर मन और मस्तिष्क में द्वंद्व शुरू हो जाता है। मस्तिष्क तर्क के आधार पर निर्णय लेने को प्रेरित करता है, जबकि मन भावनाओं और संवेदनाओं के आधार पर। उदाहरण के लिए, जब हमें कोई कठिन निर्णय लेना हो, तो मस्तिष्क लाभ-हानि की गणना करता है, जबकि मन संबंधों और नैतिक मूल्यों पर जोर देता है। यह द्वंद्व कभी-कभी हमें भ्रमित कर देता है और सही निर्णय लेने में बाधा उत्पन्न करता है।
इस द्वंद्व को संतुलित करना ही जीवन का वास्तविक कौशल है। हमें मस्तिष्क के तर्क और मन की भावनाओं के बीच सामंजस्य स्थापित करना सीखना चाहिए, ताकि हमारे निर्णय न केवल तर्कसंगत हों, बल्कि मानवीयता और संवेदनशीलता से भी परिपूर्ण हों। यही संतुलन जीवन को सुखद और सार्थक बनाता है।