बेखबर को
इश्क को राजी करेंगे चल मेरे संग
अब तलाशेंगे किसी तीर -ए -नजर को
होके घायल लौट आएंगे ज़ब दोनों
फिर खबर हो जाएगी उस बेखबर को
इश्क भी बदनाम है मेरे जैसा
है तो सच्चा पर मगर झूठा बना है
आदमी तबाह है कर्मों से अपने
मगर इश्क बर्बादी का कूंचा बना है
सच का चश्मा है जरूरी सिद्धार्थ सब को
साफगोई चाहिए अब हर नजर को
इश्क को राजी करेंगे चल मेरे संग
अब तलाशेंगे किसी तीर -ए -नजर को
होके घायल लौट आएंगे ज़ब दोनों
फिर खबर हो जाएगी उस बेखबर को
कौन किसको जानता था बात बीती
है नयापन आजकल के दौर में भी
ढूढ़ लेतें हैं सब अपने मन के माफ़िक
किसी की खासियत मिलती होगी और में भी
रात में कर देते हैं वे भी अंधेरा
जो दिखाते थे दिए दोपहर को
इश्क को राजी करेंगे चल मेरे संग
अब तलाशेंगे किसी तीर -ए -नजर को
होके घायल लौट आएंगे ज़ब दोनों
फिर खबर हो जाएगी उस बेखबर को
आदमी जो भागता है खुद से हरदम वह ठहरता है किसी मायूसी के घर
दुःख हो जाता हैं अचानक पंगु मानों
ऊपर से लग जाता है खुशियों को पर
चलती दुनिया में जीने के खातिर
अब सीखना होगा चलना शजर को
इश्क को राजी करेंगे चल मेरे संग
अब तलाशेंगे किसी तीर -ए -नजर को
होके घायल लौट आएंगे ज़ब दोनों
फिर खबर हो जाएगी उस बेखबर को
-सिद्धार्थ गोरखपुरी