बृज की बात ये बृज के ग्वाल बाल बृज की हर नार पे प्रीत लुटावत
बृज की बात ये बृज के ग्वाल बाल बृज की हर नार पे प्रीत लुटावत् है
बार बार बृषभानुजा करे मनुहार बार बरबस मंद मंद मुस्कावत है
मायाधीश करे माया माय यशुमति को मनावत है,बन के सहज मिठ बोरी बतियावत है ,
गोपियां संग लाड लड़ावत ग्वाल संग दधि चुरावत बिहारी गोकुल गौ ग्वाल संग वन बन डोलत है
,यमुना के तट कदंब के विटप मुरली की टेर सुनावत है
बाल लीलन को देख देख तीनों लोक संग देवन इठलावत है
खीजे दाऊ संग गोप ग्वालिन गिरधर , गुपचुप लीला दिखावत हैं
देखदेख श्याम श्यामा जू लाडली पे मंद मंद मुस्कावत अश्रु अशुवन सुमन नेह बरसावत है तीनों लोकन के सुख बिसरावत अश्रु प्रभु सिमरन दिन बितावत हैं