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16 Feb 2021 · 1 min read

‘ बूढ़े की लाठी ‘

गंगा काका आज खुश भी थे और दुखी भी खुश इसलिए की उनका बेटा विदेश से आ रहा था और दुखी इसलिए की घर ना आकर सीधे अपने ससुराल जा रहा था । जिस बेटे को पढ़ाने के लिए अपना कच्चा घर पक्का ना करा पाये आज उस बेटे को वो घर सुविधा से रहित लग रहा था , सच ही तो कह रहा था उसके पत्नी – बच्चे कैसे रहेगें इस कच्चे घर में ? मन में एक टीस उठ रही थी याद आ रहा था कैसे बेटे को कंधों पर बिठा मेले में ले जाते थे…आज बही बेटा उनको लेने के लिए अपनी गाड़ी भी नही भेज सकता ? बाप थे मन पर बस नही चल पा रहा था बेटा – बहु और पोतों को देखने का मोह विचलित किये दे रहा था , गंगा काका ने सोचा इस बार इतने साल बाद आया है अब पता नही कब आयेगा…अपने मन को कड़ा कर सारा दुख झाड़ कर अपनी लाठी उठा चल दिये अपने उस बेटे से मिलने जिसको उनकी इस उम्र में ‘ बूढ़े की लाठी ‘ बनना था लेकिन अफसोस….लकड़ी की लाठी ही ‘ बूढ़े की लाठी ‘ बनी और गंगा काका को उनके गंतव्य की ओर ले चली ।

स्वरचित एवं मौलिक
( ममता सिंह देवा , 09/02/2021 )

Language: Hindi
302 Views
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