बूढ़ा वटवृक्ष
राघव के पिताजी बहुत ही सीधे और सरल स्वभाव के थे ,
पेशे से वो इंजीनियर थे लेकिन रहन – सहन बहुत सादा था ,
ये बात अक्सर राघव को खटकती रहती थी की आखिर पिताजी इतने सीधे क्यों हैं ? राघव के दोस्त जब घर पे आते थे तो वो अक्सर देखते थे की राघव के पिताजी पुरानी साइकिल उठा के सब्जी लेने चल दें ये देख के वो सब राघव का मज़ाक बनाते थे |
राघव का परिवार कुल दस सदस्यों का था जिसकी ज़िम्मेदारी पिताजी पर ही थी , धीरे -२ राघव बड़ा होता गया उसके मन में ये बात घर करती गयी की पिताजी बहुत कंजूस हैं तभी तो वो एक इंजीनियर होते हुए भी कोई स्टेटस सिंबल फॉलो नहीं करते हैं , वही टूटी साइकिल से चलना और तो और कभी कभी पांच पांच किलोमीटर चल के ऑटो और बस का किराया बचाना , समय बीतने के साथ राघव ने एमएससी की परीक्षा उत्तीर्ण कर ली अब वह बिज़नेस के क्षेत्र में आना चाहता था , चूँकि उसकी उसके पिताजी से बनती नहीं थी तो अपने यार दोस्तों से फाइनेंसियल मदद मांगने लगा लेकिन बात आठ दस लाख रुपयों की थी तो आजकल तो लोग एक रूपया न दें , बात यहाँ तो लाखों की थी और राघव के पिता चाहते थे की राघव नौकरी करे लेकिन राघव का मन बिज़नेस के प्रति ही समर्पित था ,…राघव के मन में तो पहले से ही पिताजी के लिए दुराव था की ये कंजूस हैं …खैर राघव ने किसी तरह से पिताजी से बहस वगैरह कर के पैसे ले के पार्टनरशिप में अपने एक दोस्त कमलेश के साथ बिज़नेस शुरू किया लेकिन बिज़नेस में बहुत घाटा हुआ …कुछ माल की हेरा फेरी ऑफिस के और लोगों ने की लेकिन इलज़ाम राघव पे आया ,…चूँकि कमलेश की पार्टनरशिप ज़्यादा थी तो वो राघव पे हेरा फेरी के मॉल के बीस लाख रुपये देने का दबाव डालने लगा …की मुझे एक हफ्ते के भीतर भीतर पैसे दो अन्यथा जेल भिजवा दूंगा ..राघव अपने उन्ही पिताजी के पास गया जिनको वो कंजूस का दर्जा देता था पिताजी को सब व्यथा बताई…पिताजी से अपने बच्चे का दर्द सहन न हुआ बोले बेटा मैं कुछ न कुछ करता हूँ ,…पिताजी अब रिटायर हो चुके थे सारा पैसा घर बनवाने और पांच बेटियों की शादी और राघव के दादा दादी के इलाज में चला गया था जिसके चलते वो कर्जदार भी थे …तीस हज़ार की पेंशन का आधा भाग कर्ज चुकाने में जाता था और आधा परिवार चलाने में…
राघव के पिताजी ने खैर जैसे तैसे आनन फानन में मक़ान बेचने का निर्णय लिया ,औने – पौने बेचे जाने की वजह से मकान की कीमत मात्र तीस लाख लगी जिसमे से उन्होंने बीस लाख राघव को दिए कमलेश को देने के लिए और बाकी दस लाख राघव को ही दिए की बेटे इस बार खुद से अकेले का बिज़नेस शुरू करो और पूरे परिवार के साथ किराये के मकान में रहने लगे ….राघव को पिताजी का इतना विशाल ह्रदय देख के ठेंस पहुंची अपने पहले के किये गए व्यव्हार के प्रति और उसने मन ही मन पिताजी का सहयोग और जी तोड़ मेहनत की ठानी और पिताजी से माफ़ी भी मांगी …आज….उसे उस बूढ़े वटवृक्ष की महत्ता समझ आ गयी थी …की वटवृक्ष अपने लिए कुछ नहीं करता लेकिन ज़िन्दगी भर दूसरों को छाया देता है |
द्वारा – नेहा ‘आज़ाद’