*बूढ़ापन सदा छुपाया (हास्य गीत)*
बूढ़ापन सदा छुपाया (हास्य गीत)
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अम्मा ने भरसक अपना बूढ़ापन सदा छुपाया
(1)
कभी उम्र अपनी पचपन से ज्यादा नहीं बताई
कहतीं गिनती इससे ज्यादा हमको नहीं सिखाई
कहाँ काफिला पचपन से आगे उनका बढ़ पाया
अम्मा ने भरसक अपना बूढ़ापन सदा छुपाया
(2)
श्वेत बाल जब भेद आयु का , उनका लगे बताने
पोल खुलेगी अब यह गम अम्मा को लगा सताने
पचपन जिंदाबाद , काम डाई का डिब्बा आया
अम्मा ने भरसक अपना बूढ़ापन सदा छुपाया
(3)
चेहरे की झुर्री ने गाई , बूढ़ेपन की गाथा
झुर्री देखी तो अम्मा ने पीटा अपना माथा
कहीं न दीखे झुर्री , मुँह अम्मा ने खूब फुलाया
अम्मा ने भरसक अपना बूढ़ापन सदा छुपाया
(4)
थकी आँख ने करी शिकायत, चश्मा बोला “आऊँ”
अम्मा बोलीं भले न दीखे , चश्मा नहीं लगाऊँ
बंद हो गया दिखना लेकिन चश्मा नहीं चढ़ाया
अम्मा ने भरसक अपना बूढ़ापन सदा छुपाया
(5)
फिर घुटनों में दर्द हुआ , अब अम्मा कब चल पातीं
मुश्किल से दो- चार कदम बस, चलकर थोड़ा जातीं
अब अम्मा मजबूर ,कहा मेरी पैंसठ की काया
अम्मा ने भरसक अपना बूढ़ापन सदा छुपाया
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रचयिता : रवि प्रकाश , बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451