बूँद-बूँद को तरसा गाँव
बूँद-बूँद को
तरसा गाँव ।
बोर खुदे
पाइपलाइन है,
घरों-घरों में
टोंटी नल है ।
कुएँ बहुत हैं
ताल खुदे हैं,
कहीं न लेकिन
किंचित जल है ।
सूखे पत्ते
रूठी छाँव ।
गैयें प्यासीं,
बकरीं प्यासीं,
गौरैया में
छाई उदासी ।
तितर-बितर हैं
जीव-जन्तु भी,
प्यासा उल्लू
भरे उँघासी ।
कौओं की भी
सूखी काँव ।
उधर प्यास है,
इधर प्यास है,
प्यास खोजती
किधर प्यास है ।
खोज-खोज कर
लाते पानी
कुछ लोगों
का ही प्रयास है ।
उल्टे पड़ते
सारे दाँव ।
बूँद-बूँद को
तरसा गाँव ।
— ईश्वर दयाल गोस्वामी