बूँद की बलि
देख दशा जल की मेरी जान जली,
मिला न जल वहाँ मची खलबली|
जल की हर बूँद देती अपनी बलि,
बूँद ने कहा मैं छोड़ धरा चली||1||
सुन हरी धरा थी जब तलक रहा जल,
खुशी से भरा था जीवन का हर पल|
व्यर्थ क्यों बहाया हमने साँझ सहर दोपहर,
तरसे अब पानी नगर गाँव हर गली||2||
पानी बिना सूना पड़ा ये जीवन,
बादल बिन जैसे हो नीरव गगन|
सूख रहे सर, नद और निर्झर
‘मयंक’ तरसे पानी नगर गाँव हर गली||3||
✍ के.आर. परमाल ‘मयंक’