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15 May 2024 · 8 min read

बुली

बुली

फ़ोन की जैसे ही घंटी बजी मनीष ने कहा, “ ले उठा लो, आठ बज गए हैं , तुम्हारी मम्मी का होगा । “
अंजली के चेहरे पर मुस्कराहट आ गई, “ हाँ मम्मी का ही है। “ उसने मोबाइल उठाते हुए कहा ।
मम्मी कुछ बोले जा रही थी और अंजली “ जी मम्मी, जी मम्मी “ कहे जा रही थी ।
फ़ोन ख़त्म हुआ तो मनीष ने देखा उसके चेहरे पर गहरे चिंता के भाव हैं ।
“ क्या हुआ? “ मनीष ने फ़र्ज़ी तौर पर पूछा ।
“ मम्मी कह रही थी तुम्हें नौकरी नहीं छोड़नी चाहिए, यह नौकरी तो तुम्हें पापा की सिफ़ारिश से मिल गई थी , दोबारा ऐसी नौकरी मिलना मुश्किल हो सकता है । “
“ अपनी मम्मी से कहना यह नौकरी मुझे इसलिए मिली थी क्योंकि मैं इसके काबिल था, कोई किसी को इतनी तनख़्वाह किसी के कहने से नहीं दे देता , और मैं बिज़नेस भी करना चाहता हूँ तो इसलिए क्योंकि मुझे पता है , मैं कर सकता हूँ ।”
“ तुम बुरा क्यों मान रहे हो , मम्मी को हमारी फ़िक्र है , बस ।”
मनीष चुप हो गया ।

कुछ महीने बाद मनीष को मिलने एक व्यक्ति उनके घर आया , उसने कुछ काग़ज़ात निकाले और मनीष ने उन पर हस्ताक्षर कर दिये ।

“ यह कौन से काग़ज़ात थे ?” अंजली ने उसके जाने के बाद पूछा ।
“ मैंने आफ़िस स्पेस लिया है ।”
“ क्या”.. उसने आश्चर्य चकित होते हुए कहा “ और मुझे बताया भी नहीं ।”
“ बताना चाहता था, पर मुझे डर था तुम अपनी माँ को बता दोगी ।”
“ तो ?”
“ तो क्या , अपनी माँ के सामने तुम कमज़ोर पड़ जाती हो “ … फिर मैं नहीं चाहता था कि मेरी हिम्मत टूट जाए ।”

अंजली कुछ देर असमंजस में बैठी रही , फिर कहा , “ अगर माँ हमें पैसे नहीं देती तो आज हमारे पास न यह घर होता , न तुम्हारी नौकरी ।”

“ नौकरी मैंने छोड़ दी है, यह घर उन्होंने तुम्हें दिया है, तुम छोटे घर में नहीं रहना चाहती थी .. ।”

“ नौकरी छोड़ दी है.. “ जैसे उसे पूरी बात सुनाई ही न दी हो ।
“ हाँ ।”
अंजली ने पल भर के लिए उसे सूनी आँखों से देखा , फिर उसका रोना छूट गया ।
मनीष ने उसकी कुर्सी के पास ज़मीन पर बैठते हुए कहा , “ रोओ मत , मुझे खुद को साबित करने का एक मौक़ा दो ।”
“ और यदि फेल हो गए तो फिर से मेरे माँ बाप की मदद लेने पहुँच जायेंगे ।” अब तो अंजली और भी ज़ोर से रोने लगी ।

मनीष उठ कर अपने कमरे में चला गया । उस रात अंजली बाहर के कमरे में जागती रही और सोती रही । सुबह उठी तो उसकी आँखें सूजी थी । मनीष को बहुत दुख हुआ, उसने उसे अपनी बाहों में भरना चाहा तो अंजली ने झटक दिया ,

“ सारी ।” उसने फिर से क़रीब आने की कोशिश करते हुए कहा ।
“ तुम्हें मेरी कितनी परवाह है , यह तुमने कल साबित कर दिया ।”
“ मानता हूँ मैंने ठीक नहीं किया , पर पिछले एक साल से हम इस बिज़नेस की तैयारी कर रहे हैं, जब तुम मेरे साथ होती हो तो तुम्हें यह सब संभव लगता है, फिर मम्मी से बात करती हो तो तुम्हारी बातों में डर के सिवा कुछ नहीं होता है । तुम्हारे इस डर से मैं कमज़ोर पड़ने लगता हूँ, मेरी हिम्मत टूटने लगती है । “

अंजली को लगा बात में कहीं तो कुछ सच्चाई है, थोड़ा रूक कर उसने कहा, “ फिर भी तुमने जो किया उसे मैं माफ़ नहीं करूँगी ।”
मनीष हंस दिया , “ मत करना ।” और उसने बाहों में भर लिया, फिर कहा, “ मुझे सपोर्ट करोगी न?”
अंजली मुस्करा दी , “ अब यह तो करना ही पड़ेगा, तुमने चुनाव कहाँ छोड़ा है ।”

उस पूरे दिन वह काम करते रहे, और शाम तक उनमें एक नई ऊर्जा का संचार भी हो रहा था । दोनों ने शाम को मंदिर जाकर अपनी सफलता के लिए प्रार्थना की और अंजली ने माँ को वहीं से फ़ोन किया, माँ तो धक से रह गई । उन्होंने अंजली को बहुत फटकार लगाई, फिर मनीष को भी फ़ोन पर बुलाकर चार बातें सुना दी । मनीष के ऊपर तो कुछ विशेष प्रभाव नहीं हुआ, परन्तु अंजली का आत्मविश्वास फिर से डोलने लगा । फिर तो यह रोज़ की कहानी होने लगी , जब भी माँ से बात होती अंजली बहक जाती ।

एक दिन अंजली अच्छे मूड में थी , वे दोनों रेस्टोरेन्ट में बैठे एक क्लाइंट का इंतज़ार कर रहे थे कि मनीष ने कहा,
“ यह पूरा साल कितने स्ट्रैस में बीता है , अब थोड़ा बहुत काम जमने लगा है तो जैसे थकावट सी हो रही है, और कहीं जाकर दो दिन बस सोने का मन है ।”
“ तो चलो न मेरी माँ के पास, उससे ज़्यादा आराम तुम्हें कहीं नहीं मिलेगा ।”
मनीष ने जवाब नहीं दिया । अंजली ने कहा, “
“ क्या हुआ, मेरी माँ का नाम आते ही मैं देख रही हूँ तुम्हारा मुँह बन जाता है ।”

इतने में क्लाइंट आ गया और बात वहीं रह गई । मीटिंग अच्छी गई थी, मनीष खुश लग रहा था , वे दोनों गाड़ी में घर जा रहे थे , अंजली ने माँ को फ़ोन लगा दिया और मीटिंग के बारे में बताना शुरू कर दिया , मनीष को इतना ग़ुस्सा आया कि उसने गाड़ी रोक दी ।
“ क्या हुआ?” अंजली ने फ़ोन पर हाथ रखते हुए कहा ।
“ तुम पहले बात कर लो “
“ मम्मी मैं आपको बाद में फ़ोन करती हूँ ।” कहकर उसने फ़ोन काट दिया ।
मनीष ने गाड़ी फिर से चलानी शुरू कर दी । दोनों चुप थे । अंजली यह समझ रही थी कि मनीष को उसका यूँ हर बात पर रिपोर्ट देना पसंद नहीं , वह इसलिए अब तभी बात करती थी , जब वह उससे दूर होती थी , पर वह आज इतनी खुश थी कि उससे रहा नहीं गया ।

मनीष घर आते ही फट पड़ा , “ तुम्हारी माँ बुली है, तुम्हें पंगु बनाकर रखा है, न खुद कुछ किया है, न तुम्हें अपने पंजे से निकलने देती हैं । यहाँ हम नये बिज़नेस के संघर्ष से गुजर ही रहे हैं, साथ में उनकी लगातार की नकारात्मकता को भी झेलना पड़ता है ।” फिर पास आते हुए उसने कहा , “ बिज़नेस अभी मिला तो नहीं न, बस उसकी संभावना बनी है , क्या ज़रूरत है उनके विचार जानने की ?”

मनीष का यह फटना अंजली के लिए नया था , फिर भी उसने उसे सीधे आँखों में देखते हुए कहा, “ तुमने मेरी माँ के बुली कहा ?”
“ हाँ । और यह मैं पहले दिन ही समझ गया था , जब तुम्हारे घर पहली बार खाना खाने आया था , कैसे नौकरों को डांट रही थी , नैपकिन ठीक से नहीं रखा, पानी ठंडा ज़्यादा है, सब्ज़ी ठीक से गर्म नहीं.. पता नहीं क्या क्या , जिसे तुम परफ़ेक्शनिस्ट कहती हो, वह बुलीजिम है , परफ़ेक्शनिस्ट वह होता है जो स्वयं से और बेहतर की माँग करे, न कि वह जो दूसरों की लगातार ग़लतियाँ निकाले और बिना मतलब राय दें और यदि राय न लें तो संबंध खोने का डर बना रहे, किसी बातचीत की संभावना ही न हो , या तो मेरा तरीक़ा नहीं तो टाटा बाय बाय ।” मनीष यह सब इतने प्रवाह से बोल रहा था , मानो मंच से एक भीड़ को संबोधित कर रहा हो ।”

“ यह सब पहले ही समझ आ गया था तो शादी क्यों की मुझसे?”
“ मति मारी गई थी मेरी , पता नहीं था , साफ्ट पावर की तरह, साफ्ट बुलिंग भी होती है , जहां बकरे को गुलाम बनाने से पहले बहुत आदर सत्कार करके खिलाया पिलाया जाता है । “

वह इतना थका था कि वहीं सोफ़े पर सो गया । इतने में फ़ोन की घंटी बजी, माँ थी ,
“ हलों ।” अंजली ने कहा ।
“ रो क्यों रही है ।”
“ कुछ नहीं , मनीष से झगड़ा हो रहा था ।”
“ वो अपने आपको समझता क्या है , जितना हमने उसके लिए किया है, कोई न करे , है क्या , एक क्लर्क का बेटा, मैं तो कहती हूँ तूं अब भी उसे छोड़ दे । आजकल तलाक़ आम बात है, दूसरी शादी आसानी से हो जाती है, इस बार हम अपनी बराबरी के लोगों से रिश्ता जोड़ेंगे ।”

अंजली ने माँ की बात सुनी और फिर एक पल मनीष के थके हारे चेहरे को देखा और उस एक पल वह बहुत कुछ समझ गई, उसने कहा ,
“ पर माँ , बराबर की हैसियत के लड़के को तुम बुली तो नहीं कर सकोगी न?”
“ क्या ,क्या कहा तुमने ?”
“ आपने सुन लिया है माँ ।” और उसने फ़ोन नीचे रख दिया ।

अगली सुबह वह उठी तो देखा मनीष सोफ़े पर बैठा है और उसके चेहरे पर गहरी उदासी है । वह उसके पास जाकर बैठ गई ,
“ थैंक्यू ।” अंजली ने कहा ।
“ किसलिए?”
“ मुझे दिखाने के लिए कि मेरी माँ बुली है ।”
“ अरे यार, आय एम सारी, कल बहुत थक गया था , फिर थोड़ी मुझे चढ़ भी गई थी ।”
“ नहीं , तुम ठीक थे , आपको उनके हिसाब से चलना पड़ता है, यह कही न कहीं मुझे पता था , पर इतना साफ़ नहीं था ।”
मनीष ने उसे थोड़ा हैरानी से देखा तो वह मुस्करा दी , “ कल रात मुझे पहली बार लगा, उनका व्यवहार सभी से ऐसा है , उनका अपने से कम लोगों को कुछ भी देना , इस अपेक्षा से जुड़ा है कि उनका सही ग़लत ही इस संबंध में मान्य होगा , और यह उन्हें बुली बनाता है , उन्हें इस बात से कोई मतलब नहीं कि मैं क्या करना चाहती हूँ, किसके साथ खुश हूँ , मेरे किस निर्णय से उनके सोशल स्टेट्स पर क्या असर पड़ता है , उनका मतलब बस इसी से है, यह उनको बुली बनाता है, उनके काम में आप कोई गलती निकाल दें वह अपराध हो जाता है , यह उन्हें बुली बनाता है ।”
“ बस बस , माँ हैं तुम्हारी, तुम तो रूक ही नहीं रही ।”
अंजली मुस्करा दी, “ तुम सचमुच बहुत अच्छे हो ॥”
मनीष भी मुस्करा दिया , “ चाय पियोगी । “
“ हाँ ।”
मनीष चाय बनाने चला गया तो वह बाहर बालकनी में आ गई, सूरज कहीं दूर से उगता हुआ दिखाई दे रहा था , उसने सोचा , सही दूरी भी कितनी ज़रूरी है रिश्तों में , वह माँ के इतने क़रीब थी कि उसे पता ही नहीं चला कि उसके आत्मविश्वास की कमी का यह कारण है ।

मनीष चाय लाया तो अंजली ने कुछ पल रूक कर कहा, “ बहुत हल्का लग रहा है आज , जैसे एक स्ट्रैस ख़त्म हो गया है ।

“ माँ को फ़ोन ज़रूर करती रहना , पर निर्णय हमेशा अपने ही लेना , बिना डरे ।” मनीष ने अपनी बाँह उसके कंधों पर फैलाते हुए कहा ।

अंजली कुछ पल सुबह के सौंदर्य में खोई रही,फिर उसने शांत मन से कहा,

“ मैं समझ रही हूँ , तुम क्या कहना चाहते हो, मैं उनका ध्यान रखूँगी, तुम फ़िक्र मत करो , मैं जानती हूँ , वह नहीं जानती कि वह बुली हैं ।”

दोनों के मन शांत हो गए, जैसे रात भर के अंधड़ तूफ़ान के बाद सुबह बादल छट गए हों ।

…. शशि महाजन

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