‘ बुलावा ‘
सुनती हो रीमा आज रात के खाने पर बुलावा आया है बड़े भाई साहब के यहाँ से , खुद भाई साहब का फोन आया था…उसका माथा ठनका फिर सोचा चलो ‘ देर आये दुरूस्त आये ‘ ।
भाई साहब के घर पर खूब चहल – पहल थी बीस – बाईस लोग थे , दोनों जन के पैर छू वो भी सबके साथ बैठ गई । कोई नाश्ता – वाश्ता भी लायेगा जेठ को आवाज लगाते सुन रसोई की तरफ जाने लगी , जिठानी की पड़ोसन जिठानी से कह रही थी…आज फिर गीता नही आई पूड़ियां बेलने ? अरे तुम चिंता क्यों करती हो इसिलिए तो रीमा को बुला लिया है ।
स्वरचित एवं मौलिक
( ममता सिंह देवा , 10/06/2021 )