बुलबुल एक सन्समरण
निज अनुभव#१
अलस्सुबह रोजमर्रा के जरूरी काम निपटा कर विद्यालय जाने के लिये तैयार होने पीछे वाले कमरे में गई तो बाहर तार पर बैठी दो बुलबुलों के कलरव ने ध्यान खींच लिया।वो इतनी तेजी से चटर पटर कर रहीं थीं मानो समय कम है और बातें ज्यादा,मुझे ऐसा लगा कि सखियाँ शायद ज्यादा दिन बाद मिली है,शिकायतों का दौर चल रहा है।
हैरानी तब हुई जब दोपहर बाद वापस आई तो देखा दोनो चिडियाँ वहीँ जमी हैं और शोर पहले से भी ज्यादा मचा रखा है।
मेरी बेटी ने बताया कि पीछे स्टोर में छोटा चिडिया का बच्चा सामान में फँसा है ।
मैं निकालने पहुँची तो दोनो मुझ पर झपटीं पर शायद उन्हें समझ आ गया कि मैं मदद करना चाहती हू ँवो शान्त हो तार पर बैठ गई ं।
रूमाल में आराम से पकड बच्चे को मैंने जैसे ही बाहर छोडा एक बुल बुल ने इतने मीठे स्वर में कुछ कहा जैसे आभार प्रकट करती हो।
आज सब काम छोड मै अभिभूत हो उनका क्रिया कलाप ही देखती रह गई शाम ढलने से पहले उन्होने बच्चे को उडना सिखा दिया।
कच्चे पंखों में जान फूँक वे अपने आशियाने की ओर उड चले।
आज महसूस हुआ..कि
भावनाओं का समंदर
ठाठें मार रहा
हर छोटे से छोटे जीव के अंदर
इसी लिए शायद
लगता ये जहाँ बेहिसाब सुन्दर।।
अपर्णाथपलियाल”रानू”