बुन्देली दोहा प्रतियोगिता -192 वीं शब्द – टिक्कड़
बुंदेली दोहा प्रतियोगिता-192वीं
दिनांक -30/12024
प्रदत्त शब्द-टिक्कड़
संयोजक-राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी’
आयोजक -जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़
प्राप्त प्रविष्ठियां :-
1
बैगन को भरता बनो, नोनीं अरहर दार।
चटनी लइ अमरूद की, ठोकें टिक्कड़ यार।।
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-रामेश्वर प्रसाद गुप्ता इंदु,बडागांव झांसी
2
मौटे-मौटे टिक्कड़ा,कंड़ी भटिया सैंक ।
घीव चिपरकैं खाइये,चटनी भरता नैंक ।।
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-शोभाराम दाँगी ‘इंदु’, नदनवारा
3
टिक्कड़ बांदैं पोटली, धरैं टिपरिया मूढ़।
उपनैं खेतन पै चले,कका काढ़बे कूढ़।।
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-प्रदीप खरे ‘मंजुल’, टीकमगढ़
4
बन्न -बन्न कौ नाज हौ,लैव सबइ खौं पीस।
टिक्कड़ ठौकों हाथ सैं,और भजौ जगदीस।।
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-सुभाष सिंघई, जतारा
5
बना पनपथा टिक्कडा,अंगरन पै सिकवाय।
घीसें चुपर अचार संग,बांट चूंट कें खाय।।
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-एम.एल.त्यागी, खरगापुर
6
बाबा बैरागी सबइ, टिक्कड़ ठोकें रोज।
हरि खों भोग लगाय कें,करें प्रेम सें भोज।।
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-आशा रिछारिया(निवाड़ी)
7
बाबा बैरागी भले,हरि सें हेत लगायँ।
भजन करें नित भाव सें ,टिक्कड़ ठोकें खायँ।।
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– डॉ. देवदत्त द्विवेदी, बड़ा मलेहरा
8
टिक्कड़ खाकें बउ मरीं , उम्मर नब्बै बर्ष ।
तनक मनक ही दुख हुआ , बाकी सबकुछ हर्ष ।।
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-प्रमोद मिश्रा वल्देवगढ़
9
टिक्कड़ पे हो सुद्ध घी, और सँगें गुर होय।
भोग लगे बजरंग खों, जीवै को सुख मोय।।
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-श्यामराव धर्मपुरीकर,गंजबासौदा,
10
बिर्रा कौ टिक्कड़ बनें,भर्त भटा उर दार।
भोग लगे हनुमान खों,घी गुर शक्कर डार।।
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– भगवान सिंह लोधी “अनुरागी”,हटा
11
कुण्डेशुर के घाट पै, कवि लमटेरा गायँ ।
बुन्देली के रस भरे, ठोकैं टिक्कड़ खायँ।।
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एस आर सरल,टीकमगढ़
12
जीनें पडतन में खुदइँ, टिक्कड़ ठोके खाय।
विद्या पा कें ओइ नें, जीवन भर सुख पाय।।
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– अंजनी कुमार चतुर्वेदी,निवाड़ी
13
टिक्कड़ चूले पै सिकैं,सोंदो आबै स्वाद।
जब सैं छूटे गांँव हैं,रै गई केवल याद।।
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-तरुणा खरे जबलपुर
14
अघयानें में सेंक लो,नौंने टिक्कड़ चार।
बैठ साथ में खा लियें,दोनों मिलकें यार।।
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– मूरत सिंह यादव,दतिया
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संयोजक-राजीव नामदेव’राना लिधौरी’
आयोजक -जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़