बुनते हैं जो रात-दिन
दोहा गीत..
बुनते है जो रात- दिन, षड़यंत्रो का जाल।
उठने लगता है तभी, कृत पर कई सवाल।।
लेते रहिए हर समय, सावधान हो सीख।
कर्म बिना कोई नहीं, बन सकता तारीख।।
वाह-वाह के राग से, खुद का करें उछाल।
उठने लगता है तभी, कृत पर कई सवाल।।
होता है हर आदमी, ज्ञान राशि का पुंज।
पर दुर्गुण के वास से, हो जाता वह लुंज।।
मेल नहीं हो खा रहा, जब रागों से ताल।
उठने लगता है तभी, कृत पर कई सवाल।।
मीठी बातें बोलते, पर रखते मन मैल।
पानी ऊपर तैल- सा, यह जाता है फैल।।
आनंदित होने लगे, जब गर्वित हो भाल।
उठने लगता है तभी, कृत पर कई सवाल।।
अच्छे होते हैं वही, जिनके नेक विचार।
लोभ द्वेष से हैं रहित, वाणी मधु आचार।।
भटकाने मग से लगे, श्रेष्ठ हीन हो चाल।
उठने लगता है तभी, कृत पर कई सवाल।।
बुनते हैं जो रात-दिन, षड़यंत्रो का जाल।
उठने लगता है तभी, कृत पर कई सवाल।।
डाॅ. राजेन्द्र सिंह ‘राही’
(बस्ती उ. प्र.)