बुधुआ (लघु संस्मरण)
7वीं में फेल हो चुकने के बाद उसने, किताबों को तिलांजलि दे दी और छोटी सी हीं सही, पर अपनी गृहस्थी की गाड़ी को खींच सकने लायक चाय की एक टपरी खोल ली
तीसरा पहर रहा होगा, जब मैंने अपने अलस्थ पड़े शरीर को, उसकी टपरी के बगल में सरकारी खर्चे से बने चबूतरे पर जाकर धमS से पटक दिया।
बुधुआ आँख बंद किये पर बड़ी तन्मयता से इयर फ़ोन लगाए मोबाइल पर कुछ सुन रहा था, उसके माथे को एक लय में झटकता देख समझ गया कि हो न हो यह कोई भोजपुरी गाना सुन रहा होगा, अरेरेरे! मैं तो बताना हीं भूल गया बुधुआ वही उस टपरी का कर्ता धर्ता, शाम के वक़्त हम दोस्तों की गलथेथरी को धक्का-मुक्की में बदलने से रोकने वाला रेफरी और मेरी इस कहानी का मुख्य पात्र.!. न न नायक नहीं, नायक तो सजीला होता है.. इसके जैसे फटेहाल को अपनी सोंच का केंद्र मान, अपनी इस कहानी को स्तरहीन नहीं बनाना चाहता
ये बुधुआ… न न कुछ भी हो, पर इसे नायक नहीं मान सकता। मेरे कुलीन होने का अहम मुझे ऐसा करने की इजाजत नहीं देता..
बहरहाल… मैंने उसे पुकारा बुधुआ… रे बुधुआ.. मिरगिआइल काहे हो जी, क्या सुनता है- लगावें लू जब लिपिस्टिक?
मैं उसके हाँ को लेकर आश्वस्थ था क्योंकि हम सामाज को उस नज़रिए से देखने को आदि हो चुके हैं जिसमें mrs डिसूजा के हस्बैंड ड्रिंक करते है, मनोरमा का पति शराब पीता हैं और रधवा का आदमी बेवड़ा है। इन जाहिलों को संगीत-सुरों का ज्ञान हीं कितना है जो आमिर ख़ाँ साहब की रस माधुरी में गोते लगा आएं। तो मैं आश्वस्थ था .. जवाब हाँ में हीं आएगा।
पर सहसा वो उछल पड़ा, मानो उसके लंगोट में किसी ने सुर्ख लाल कोयले भर दिए हों। तिलमिला उठा :- नहीं बाबू ! नयका app भरवाए हैं मोबाइल में। गिटिर पिटिर सुन रहे हैं।
गिटिर ??- पिटिर ?? ये क्या… मेरा सवाल पूरा हो पाता उसके पहले हीं जवाब देने को उद्धत हुए बुधुआ ने बताया था कि ये कोई फॉरेन चैनल है जिसमें वहाँ के लोग विभिन्न विषयों पर आंग्ल भाषा में परिचर्चा करते हैं। बुधुआ बता रहा था कि पिछले कुछेक हफ्ते से वो वही सुन रहा है।
उसके मुझे गलत साबित कर देने की वजह से की वह अब भोजपुरी का नहीं, अंग्रेजी का श्रोता बन चुका है कि खुन्नस से भरा मैं, हिकारत और व्यंग्य के सम्मिश्रित भाव का एक तीर उसपर चला देता हूँ। अंग्रेजी में?? तुमको बुझाता है जी?
इसमें बुझाने का का बात है भइया? अंग्रेजी कौन बोलता है? पढ़ल-लिखल आमदीए न बोलेगा
तो? उससे क्या ? तुम हो पढ़ल! जो बूझ लोगे
इसमें बुझाना का है अंग्रेजी में बोलता है तो सहिये न बोलता होगा। फायदा वाला बात है भैया, हमरी बिकनी भी…
बिकनी?? ई कौन है जी।
गुड़ीवा का नयका नाम है, ओकी महतारी रखे हैं ई नाम।
रीडर बाबू, अरे उ मंदिर के पीछे वाले उनके हिया बिकनिया की माए जाती है न काम करे, उनके हिआँ tv पर इ नाम सुने थी, हमको बोली कि गुड़ीवा का इहे नाम रखना है। हमहूं सोंचे अंग्रेजी खाना नहीं खिआ सकते, अंग्रेजी सकूल नहीं भेज सकते हमरे बस का नहीं, पर नाम त रखिये न सकते हैं अर्श बाबू, अब हमहूँ अंग्रेजी सीखेंगे अ बिकनिया को भी सुनाते है रोज । अ फिर एक दिन दुनो बाप बेटी अंग्रेजिये में बतिआएंगे । उ दिन बउआ जी आपको चाय नहीं tea पिलायेंगे tea