बुद्ध भक्त सुदत्त
सुदत्त नाम का एक व्यपारी,
धन दौलत से था संपन्न,
श्रावस्ती में गूँजति उसकी शोहरत,
सुदत्त से बन गया अनाथपिंडिका,
बुद्ध भक्त श्रेष्ठ।
बुद्ध की कीर्ति सर्वत्र् थी न्यारी,
जो सुनता था उपदेश बुद्ध का,
बुद्ध की करुणा हृदय में थी बसती ऐसे,
सुदत्त से बन गया अनाथपिंडिका ,
बुद्ध भक्त श्रेष्ठ।
राजगृह में व्यापार के भ्रमण पर,
अवगत् हुआ बुद्ध के आगमन का,
सुनने उपदेश निकट पहुँचा वह सेठ,
सुदत्त से बन गया अनाथपिंडिका ,
बुद्ध भक्त श्रेष्ठ।
कोशल नरेश जेत से क्रय किया भूमि शेष,
बिछा दिया भूमि पर मुद्राएं अनगिनत,
लुटा दिया प्रेम हृदय के खजाने का ढ़ेर ।
सुदत्त से बन गया अनाथपिंडिका ,
बुद्ध भक्त श्रेष्ठ।
किया जेतवन तथागत् बुद्ध को भेंंट,
जेतवन बिहार बना बुद्ध का धाम,
था महान सुदत्त ने किया जो दान,
सुदत्त से बन गया अनाथपिंडिका ,
बुद्ध भक्त श्रेष्ठ।
रचनाकार-
बुद्ध प्रकाश,
मौदहा हमीरपुर।