‘बुद्ध’ ने दिया आम्रपाली को ज्ञान ।
बुद्ध तुम्हारे दर्शन को,
आयी हूँ तेरे पास,
वैशाली की ‘ नगर वधू ‘ हूँ,
आम्रपाली है मेरा नाम,
हे ! तथागत बुद्ध महान,
कोटि-कोटि तुम्हें प्रणाम।
रंग रूप ने मुझको छला,
जीवन जीना किया मेरा दुश्वार,
मोहित हुए सब मेरे रूप के,
हो गई हूँ मैं घृणा की पात्र,
हे ! तथागत बुद्ध महान,
कोटि-कोटि तुम्हें प्रणाम।
राज काज धन और दौलत,
सुंदर काया के बदौलत,
जल रही है वैशाली की शांति,
मन मेरा हुआ अशांत,
हे ! तथागत बुद्ध महान,
कोटि-कोटि तुम्हें प्रणाम।
आमंत्रण भोजन का सदन में,
भिक्षुओं के संग करो स्वीकार,
अपने पवन चरणों को रख,
करुणा की दे दो कृपा विशाल,
हे ! तथागत बुद्ध महान,
कोटि-कोटि तुम्हें प्रणाम।
आश्वासन पाया आम्रपाली ने बुद्ध से,
सजा दिया आम्र मंजरी से गृह को,
छटा मनोहारी ऐसे बिखरी नगर में,
बुद्ध ने किया प्रवेश आँगन में,
हे ! तथागत बुद्ध महान,
कोटि-कोटि तुम्हें प्रणाम।
करुणा सागर भोजन करने के पश्चात,
आम्रपालि को दिया ज्ञान उपदेश ,
दान किया सर्वस्व और आम्र विहार,
अर्हत् बन चली बुद्ध के मार्ग,
हे तथागत बुद्ध महान,
कोटि-कोटि तुम्हें प्रणाम।
रचनाकार-
बुद्ध प्रकाश
मौदहा हमीरपुर।