बुद्ध चाहिए युद्ध नहीं / रजनी तिलक (पूरी कविता…)
क्यों खड़ी की तुमने
बारूद के ढेर पर हमारी दुनिया
मुझे जीवन की आस है।
मैं सावन को आँखों में भरकर
बहारों में झूलना चाहती हूँ
शाँति, ज्ञान, करुणा मेरा गहना
युद्ध, क्रूरता, तृष्णा तुम्हारा हथियार
हिरोशिमा की तड़प मैं भूलना चाहती हूँ।
तुमने जो मृत्यु बीज
परमाणु युद्ध क्यों बोया?
यह घृणा-मृत्यु का वटवृक्ष
पल में लाखों को भी लेगा,
बुद्ध के देश में
पंचशील, संकल्प टूट जाएगा।
मैं जीवन की हथेलियों में
दुलारना चाहती हूँ,
मैं अपने बच्चों को
इंसान बनाना चाहती हूँ,
उस देश में भी मेरी सीमाएँ
अपने बच्चों पर अरमान सजाती होंगी
वह भी उन्हें ‘कुछ’ बनाने की
ललक लिए दुलारती होंगी।
हिरोशिमा की माँओं की सिसक
अभी बाक़ी है।
ये जंग की तलवार
हमारे सिर से हटा दो
बारूद के ढेर पर
क्यों खड़ी हो हमारी दुनिया?
हम जंग नहीं चाहते,
जीना चाहते हैं
हम विनाश नहीं सृजन चाहते हैं
हम युद्ध नहीं
बुद्ध चाहते हैं।
#BuddhaPurnima