बुद्धिजीवियों में भी पोगापंथ की बीमारी
देश को खतरा धार्मिक पोंगापंथियों से सबसे ज्यादा है जो स्वयं तो मानसिक रूप से बीमार हैं ही. साथ ही देश को भी ‘स्वस्थ नहीं रहने देंगे’ के अभियान पर हैं. कथा-पुराणिकों के चेले अभी भी रोज गांव में सत्संग करते ही हैं. अन्य धर्मावलंबियों की तरह मुस्लिम कट्टरपंथियों ने भी आतंक मचा रखा है. वे भी कुरान का हवाला देकर कोरोना को बेअसर करने का दावा कर रहे हैं. अस्पताल में भर्ती रहने के बावजूद सामूहिक नमाज अभी भी करने पर आमादा हैं. हमारे कई हिंदू भाई अस्पताल में भी पूजन करने से नहीं चूके. गोमूत्र-गोबर से इलाज जारी है तो ऊंट मूत्र पार्टी भी चली. यज्ञ और नारेबाजी से तो कोरोना को भगाया ही जा रहा है. राममंदिर निर्माण ट्रस्ट के मुख्य ट्रस्टी नृत्यगोपालदास जी का दावा है कि नवरात्र में अयोध्या में पूजापाठ करें, कोरोना कुछ नहीं बिगाड़ पाएगा. नवरात्र में पूजापाठ नहीं छूटा. लोग वैष्णो देवी के यहां गए थे दर्शन करने और फंस गए लेकिन मरकस वाले निजामुद्दीन में छुप गए. नवरात्र में सामूहिक भोज से 9 बच्चियों की जिंदगी को खतरे में डाला जा रहा है, धार कपूर से स्थानीय देवी-देवताओं को खुश कर कोरोना से बचने की युक्ति जारी है. एक हमारी परिचित महिला ने तो जबर्दस्ती बच्चियों के मुंह में पूड़ी-हलवा ठूंसे जा रही थी. कोरोना देवता को खीर-पूड़ी चढ़ाने का भी उल्लेख किया जा चुका है. अभी मुझे एक वाट्सएप्प पर न्यूज मिला कि ॐ लिखा प्रिंटेड झंडा लगाने से घर में कोरोना नहीं आएगा. कोरोना का जिक्र ज्योतिष, पुराणों में खोज लिए गए हैं. बस इलाज मिल जाने दीजिए तो उसका भी जिक्र मिल जाएगा किसी न किसी धार्मिक पुस्तक में.
मंदिर-मस्जिद में जो इन दिनों स्वयं स्थगित हैं, उनसे इलाज की दया मांगी जा रही है. धन्य है आज का भारतीय, विश्वगुरु? निजामुद्दीन की घटना को लेकर उन्हें मीडिया और देश का बहुसंख्यक वर्ग शैतान साबित करने में तुला है. देश-विदेश में सभी धर्मों के अंतर्राष्ट्रीय आयोजन होते रहते हैं. निजामुद्दीन के मरकज में जो भी आए थे, वे बकायदा वीसा लेकर आए थे. अगर कुछ बिना वीसा के थे, तो वे पहुंचे कैसे? आयोजन भी सरकार की स्वीकृति से हो रहा था. चूंकि मैं स्वयं अनेक कार्यक्रमों-आंदोलनों का आयोजक रहा हूं इसलिए जानता हूं कि कार्यक्रम स्थल में एलआईबी (लोकल इंटेलिजेंस ब्यूरो) के सिपाही पहुंचकर बार-बार पहुंचकर पल-पल की जानकारी हासिल करते हैं. फिर यह आयोजन सरकार की नजरों से कैसे ओझल रहा? यह जानबूझकर की गई सरकारी बदमाशी है. बेशक हर धर्मावलंबियों में एक खास किस्म की जड़ता होती है लेकिन प्रशासन को तो अपना काम करना चाहिए. मैं मरकस की हरकत से सहमत नहीं हूं लेकिन मीडिया और हिंदू समाज जो उन्हें खलनायक निरूपित करने में तुला है, उसके खिलाफ हूं. हमारे शहर में बहुत से हिंदू लोग भी हैं जो अपने आपको छुपाए बैठे हैं. मेरे शहर में कुछ दिन पहले श्रीराम जयंती शोभायात्रा समिति दो भाग में बंटी हुई थी, एक धड़ा 2 अप्रैल को शोभायात्रा निकालने के पक्ष में था, यह बात 19 मार्च के लॉकडाउन के बाद की है. बाद में 22 मार्च को जनता कर्फ्यू के बाद शोभायात्रा निकाले जाने के निर्णय को रद्द कर दिया गया. आज ही मेरे मित्र नवरात्र पूजन पर बोल रहे थे, मैं तो पूरे विधिविधान से पूजा की है, यही कारण है मेरे मोहल्ले-पड़ोस में कोरोना फटका भी नहीं. यह मित्र पत्रकार हैं!!!
यह सब नतीजा इसलिए है कि हमने वैज्ञानिक शिक्षा को बढ़ावा दिया ही नहीं, जो कोई लीक से हटकर बात करता है, उसकी सुनते नहीं, मानवीय गरिमा की कीमत पर संवैधानिक-वैज्ञानिक मूल्यों की जगह सड़े-गले धार्मिक-सामाजिक मूल्य ढोये जा रहे हैं. इतना ही नहीं हर धर्म के धुरंधर उन्हें वैज्ञानिक ठहराने से भी बाज नहीं आते. अब भी समझ जाएं कि स्वस्थ वैज्ञानिक-तार्किक शिक्षा ही कल्याण का एकमात्र मार्ग है.
चलते-चलते….इस संकट में यह सुखद है कि हम तमाम अप्रचलित शब्दों से परिचित हुए जैसे- कोरोना, कोविड-19, लॉकडाउन, क्वारंटाइन, गोमूत्र पार्टी, ऊंट मूत्र पार्टी, मोदी किट, समाजवादी राहत पैकेट, तबलीकी जमात, पीएम केयर फंड, यह मोदी का कमाल है भाऊ…… आदि-आदि. आप भी कमेंट में ऐसे शब्दों को जोड़ते रहिए.