बुढापा
सोचा था आराम करूंगा बुढ़ापे में ना काम करूंगा
सुबह सैर को जाऊंगा सुंदर सा बाग लगाऊंगा।
पोती-पोते से मन बहलाऊंगा
पत्नी को संग घुमाऊंगा
पर जब पास बुढ़ापा आया
रोग,शोक को साथ में लाया।
नित होती रहती कोई दिक्कत
अब कैसे करूं कहीं मैं शिरकत।
तभी अंतरमन ने मुझको समझाया
जीवन का यह है एक पड़ाव
इसमें है थोड़ा ठहराव
पर इसका भी अलग आनंद है
अब जिम्मेदारी से तू मुक्त है
आओ मिलकर जश्न मनाएं
बुढ़ापे का आनंद उठाएं।