बुढ़ापा
बुढ़ापा
ना अभिलाषा मन की पूरी, ना प्रयास करो अपने मन को.
संसार में मोल जवानी का, अब कुर्बान करो अपने तन को..
खेले कूदे खाये जीभर, मात-पिता के शासन में.
भुगतत रहें तड़पते मन को, अब अपने ही आंगन में..
देख दशा अपने तन की, अब बेचैनी होती हैं.
क्यों था अब तक धोखे में, ऐसी ही दुनियां होती हैं. .
बूढ़ा तन टूटा मन, ऐसा ही क्यों अक्सर होता हैं.
जीवन तो आना जाना नित, फिर अहसास क्यों नहीं होता हैं. .
ना अभिलाषा मन की पूरी, ना प्रयास करो अपने मन को.
संसार में मोल जवानी का, अब कुर्बान करो अपने तन को..