बुझा
टांग कर रूह को,
जिस्म हम खींचे हुए
सर्दियों में आंख मसलते ,
सुबह हम उठे, कुछ खीझे हुए,
वो बचपन याद आता है,
जो हम घर पहुंचे, शाम को भीगे हुए,
आज हम सहमे से बैठे हैं,
याद करते, वो दिन बीते हुए
दौड़ कर पाते थे, मंजिल हम,
आज लगता है कि,
मंजिल की ओर, कोई घसीटे हुए
मैं की तलाश में, हम को खोते हुए