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29 Jun 2024 · 1 min read

बुंदेली दोहे- छरक

बुंदेली दोहा- छरक (अरुचि, घृणा )

#राना राखौ तुम छरक ,लबरा जितै दिखाँय।
चुगलन जैसे काम कर ,सबरन खौं भरमाँय।।

#राना मोरी बात खौं ,तनिक समझियौ आप।
बिच्छू सैं लैतइ छरक, कौन लैत है चाप।।

उनसे भी हौतइ छरक, संगत गलत दिखाय।
#राना विष की बेल भी,सिर पै कौन चढ़ाय।।

#राना काँतक लै छरक, दुष्ट सामने आय।
वेश बदलकर सामने, बातन से भरमाय।।

छू लैतइ है गंदगी ,#राना लापरवाह।
चलैं छरक कर जौ यहाँ ,सुथरी ऊकी राह।।

एक हास्य दोहा

धना कात #राना सुनौ ,काय छरक रय आज।
घर कौ करो उसार तुम ,करौ न कौनउँ लाज।।
*** ©दिनांक-29.6.2024
✍️ राजीव नामदेव”राना लिधौरी”
संपादक “आकांक्षा” पत्रिका
संपादक- ‘अनुश्रुति’ त्रैमासिक बुंदेली ई पत्रिका
जिलाध्यक्ष म.प्र. लेखक संघ टीकमगढ़
अध्यक्ष वनमाली सृजन केन्द्र टीकमगढ़
नई चर्च के पीछे, शिवनगर कालोनी,
टीकमगढ़ (मप्र)-472001
मोबाइल- 9893520965
Email – ranalidhori@gmail.com

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