बुंदेली दोहा शब्द- थराई
बुंदेली शब्द- थराई
•पहली थराई ~
करत थराई घूमतइ , माते दौइ जुआर |
सरपंची में बउँ खड़ी, घिघिया रय हर द्वार ||
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••दूसरी थराई
नहीं थराई के धरे , कहता साहूकार |
गानौ धर दो पैल तुम , फिर गिन लो कलदार ||
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•••तीसरी थराई
करत थराई व्याह में , हर बिटिया को बाप |
समधी जी अब मानियो , सबई कछु है आप ||
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••••चौथी थराई
लरका जब गलती करै , करत थराई मात् |
अबकी बेरा छोड़ दो , खतम करौ हालात ||
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•••••पाँचवीं थराई
करत थराई चोर भी , पकरै थानेदार |
करै गिलइयाँ मूड़ धर , हा-हा लगै बजार ||
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होय कसाई जिस जगाँ ,नहीं जोरियो हाथ |
नहीं थराई मानते , फोरत सबको माथ ||
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आज थराई माँग रय , काल टेंटुआ घोंट |
कल्लइँ तो कुचरौ सबै , घर की समझीं सोंट ||
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#राना सबखौ देखतइ , जौन खड़े सरपंच |
आज थराई कर रहे , करें शरम ना रंच ||
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© राजीव नामदेव “राना लिधौरी” टीकमगढ़
संपादक- “आकांक्षा” पत्रिका
संपादक- ‘अनुश्रुति’ त्रैमासिक बुंदेली ई पत्रिका
जिलाध्यक्ष म.प्र. लेखक संघ टीकमगढ़
अध्यक्ष वनमाली सृजन केन्द्र टीकमगढ़
नई चर्च के पीछे, शिवनगर कालोनी,
टीकमगढ़ (मप्र)-472001
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