बुंदेली दोहा प्रतियोगिता-158के चयनित दोहे
बुंदेली दोहा प्रतियोगिता-158
प्रदत्त शब्द- उँगइयाँ दिनांक-6/4/2024.
संयोजक- राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी’
आयोजक- बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़
प्राप्त प्रविष्ठियां :-
1
हाँत उँगइयाँ पोरुआ, हैं अनुपम उपहार,
मानव नै इनसें गढ़ो, कुशल सभ्य संसार ।
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-अरविन्द श्रीवास्तव,भोपाल
2
मिलीं उँगइयाँ छै जियै, वौ छिंगा कहलात।
छिंगा पूरे गाँव में, खुद प्रसिद्ध हो जात।।
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-अंजनी कुमार चतुर्वेदी,निबाड़ी
3
करत न कौनउ ठीक सें, जब वे एकउ काम।
उठत उॅंगइयाॅं उनइ पे, होत बेइ बदनाम।।
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-रामेश्वर प्रसाद गुप्ता इंदु.बडागांव झांसी उप्र.
4
लखी गिलहरी राम नै,दै रइ अपनौ योग ।
फेर उँगइयाँ पीठ पै, बचन दिये सुनि जोग ।।
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-शोभाराम दाँगी, नंदनवारा
5
लोग छूट को आजकल, जादा लाभ उठात।
देव उँगइयाँ तौ पकर, क्योंचा लौ आ जात।।
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अमर सिंह राय, नौगांव
6
शंख चक्र अंबुज गदा , गिर गोवर्धन धार ।
लिए उँगइयाँ ऊ परें , देखो कृष्ण मुरार ।।
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-प्रमोद मिश्रा, बल्देवगढ़
7
सबइ उॅंगइयाॅं येकसीं ,देखीं सुनी न कान ।
यैसइ होत समाज में , सब बंन्नीं इंसान ।।
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-आशाराम वर्मा “नादान ” पृथ्वीपुर
8
पाॅंच उॅंगइयाॅं हाॅंत कीं,न्यारीं भली दिखांय।
घूॅंसा मारें काउ खों, सब संगे हो जांय।।
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-भगवान सिंह लोधी “अनुरागी”, रजपुरा हटा दमोह
9
अँगुरियाँ मुंदरी सजे,श्याम सुँदर के हाथ।
महा रास क्रीड़ा करें,राधा जू कौ साथ।।
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-आशा रिछारिया जिला निवाड़ी
10
नँईं उँगइयाँ एक -सी , पर राती सब एक |
मिल जुरकै ही काम खौं , कर लेती हैं नेक ||
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-सुभाष सिंघई , जतारा
11
भोत काम कीं अंगुलियाँ,हिल मिल कें सब रायें।
जब मौका लग जाये तब,एक मुक्का बन जायें।।
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-विद्याशरण खरे, नौगांव
12
दसइ उँगइयाँ घिऊ में, मुड़ी कड़ाही बीच ।
दुसटन के सिरदार जो, नींचन सें भी नीच ।
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-शीलचन्द्र जैन शास्त्री , ललितपुर
13
मन मतवारौ होय तौ, बाँद मुसीका देव।
धीरज धरम बिबेक कीं, पकर उँगइयाँ लेव।।
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डॉ देवदत्त द्विवेदी सरस ,बड़ामलहरा छतरपुर
14
पकर उँगरिया बाप ने ,निगवो हमें सिखाव ।
रोज मताई ने हमें,नैनू खूब चटाव।।
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-डां. वी एस रिछारिया,छतरपुर
15
हांत पसारें सीस पै, धरें उँगइँयां पांच।
जब तक हैं जेठे बड़े,आंन न देबें आंच।।
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– प्रभु दयाल श्रीवास्तव पीयूष टीकमगढ़
16
पाँच उँगइयाँ हाँत कीं, जोरत जब इंसान।
मुठिया की बौ एकता, बना देत बलवान।।
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-विद्या चौहान, फरीदाबाद
17
सबई उँगइयाँ एक सीं , नहीं कोउ कीं होय।
भूल जाव ऊ बात खों , कछू धरौ नइं रोय।।
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वीरेन्द्र चंसौरिया,टीकमगढ़
18
आज उँगइयाँ खेल रइँ, मोबाइल के संग।
नज़र घटी चश्मा चढ़ो, जीवन भव भदरंग ।।
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– संजय श्रीवास्तव* मवई (दिल्ली)
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