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7 Jul 2024 · 2 min read

बुंदेली दोहा प्रतियोगिता -171

बुंदेली दोहा प्रतियोगिता-171
बिषय- झिर दिनांक-6/7/2024.
संयोजक- राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी’
आयोजक -जय बुंदेली साहित्य समूह, टीकमगढ़
प्राप्त प्रविष्ठियां :-

1
चौमासे की झिर लगी,भूकेँ दुके चरेउ।
निचुरत ठाँड़ी भैंसियाँ,टिनकेें तरें पड़ेउ।।
***
-प्रमोद मिश्रा, बल्देवगढ़
2
झटक लटैं झिर में चली,झूमर लटकैं कान।
लखैं बिना मन नहिं लगै,लागै निकसत प्रान।।
***
– प्रदीप खरे ‘मंजुल’ टीकमगढ़
3
आये बादर झूम कें, रै रै शोर मचात।
झर झर झर झर झिर लगी, झूमत मोर दिखात।।
***
-रामेश्वर प्रसाद गुप्ता ‘इंदु’,बडागांव झांसी
4
भादों की झिर में प्रकट,भये कन्हैया लाल।
हरो भार सब भूमि कौ,बनें कंश के काल।।
***
-भगवान सिंह लोधी “अनुरागी”,हटा
5
जा साहुन की झिर सखी,पूरै सबकी आस ।
भरें खेत हरयाइ सें,बुजै साल भर प्यास ।।
***
-अरविन्द श्रीवास्तव,भोपाल
6
लागी झिर कल शाम सें,कीचा मच गइ खूब।
इन्द्र देव किरपा करो,सबइ गये अब ऊब।।
***
– वीरेन्द्र चंसौरिया ,टीकमगढ़
7
प्यारी ऋतु बरसात की,मेघ दिखें चहुँ ओर।
झिर पे बादर आज है,पुरवइया पुर जोर।।
***
-विद्याशरण खरे, नौगांव
8
ऐसी झिर जा लग गई, चुअना खूब चुचाय।
मोड़ी मोड़ा रोत हैं,उनखों किते पराय।।
***
– डॉ. रेणु श्रीवास्तव, भोपाल
9
सावन मइना झिर लगी, मनवा होय अधीर।
पिया बसे परदेस में,कौन बंँधाबे धीर।।
***
-तरणा खरे, जबलपुर
10
बाट हेर रय झिर लगै,अब तो सबइँ किसान |
कुआँ-ताल भरबैं सबइ, कृपा करैं भगवान।।
***
-सुभाष सिंघई, जतारा
11
झिर में मढ़िया चू रई,गिरी दीन पै गाज।
कैसें कें चूला जलै,गीलो कंडा नाज।।
***
-विद्या चौहान, फरीदाबाद
12
झिर लगकैं हाती मघा,बरस जाॅंय जी साल।
ससकत नइॅंयाॅं जेठ तक,नदी कुआ उर ताल।।
***
-आशाराम वर्मा “नादान” पृथ्वीपुर
13
घर में राखौ एकता,सदाँ रैय सुख चैन ।
बसकारे सी झिर लगै,जुरै सम्पदा ऐंन।।
***
-रामानन्द पाठक नन्द,नैगुवां
14
चौमासे की झिर लगी,घन गरजत चहुँ ओर।
धरती पुलकित सी लगे,नाच रहो मन मोर।।
***
-आशा रिछारिया जिला निवाङी
15
कोप करो जब इंद्र नें,झिर तौ लगी अखंड।
गोबरधन परबत उठा,टोरो हरी घमंड।।
***
– डॉ.देवदत्त द्विवेदी, बड़ा मलेहरा
16
रावन की लंका जला, चूर करे अभिमान।
बुझा रये झिर सै तपन,झिन्नन के हनुमान।।
***
– एस आर ‘सरल’, टीकमगढ़
17
नीचट पथरा कूप में,पीवे नइँयाँ बूँद।
फूटी झिर बरसात में,भर लो आँखें मूँद।।
***
– अंजनी कुमार चतुर्वेदी, निवाड़ी
18
जब अनोर की झिर लगत,सावन-भादों मास।
तबइ बुझत है ठीक सें,धरती माँ की प्यास।।
***
-गोकुल प्रसाद यादव नन्हीं टेहरी
19
चार दिनों से झिर लगी,पानी बरसत खूब।
ताल तलैयां भर गये,गांव रहे हैं डूब।।
***
-मूरत सिंह यादव,दतिया
20
झर -झर -झर बूंदें गिरें,सावन की झिर लाग ।
कन्ता गए विदेश खों ,जरइ देह ज्यों आग।।
***
-रामलाल द्विवेदी प्राणेश, चित्रकूट
***
संयोजक -राजीव नामदेव राना लिधौरी’
आयोजक जय बुंदेली साहित्य समूह टीकमगढ़
मोबाइल-9893520965

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