बीजारोपण
सुनसान जमीं पर
ऊसर बंजर भूमि पर
सूखा हुआ सदियों से
दशकों तक बिन हिफाजत
एक बीज पड़ा रहा जिंदगी भर,
बिन रोपे ज़मीं में पर ।
अचानक उस बीज को
हवा लग गई,
मिल गई नमीं
फिर नमीं पाकर
उस बीज में जान पड़ी
और निकल पड़ा उमड़कर,
ज़मीं का सीना फाड़ कर ।
जब बना वो नया पौधा
ज़मीं पर खड़े खरपतवारों को
ये नागवार गुजरा
फिर उन्होंने बैठक की,
खेत के बीचों – बीच
अपनी धमक जमाने को
और कल्पित हुए बीज को डराने को ।
अब वे मिल गए हैं
सारे चोर एक हो गए हैं
अपने आतंक से तबाह करने
नए अंकुर का खात्मा करने
उसका बीज नाश करेंगे
या फिर उसे करेंगे मजबूर
आत्महत्या करने को वेमूला की तरह ।
अब समय आ गया है
अपनी लड़ाई लड़ने का
बीज को ख़ुद चलना होगा
बनाना होगा रास्ता खरपतवारों के बीच
करना होगा संघर्ष मिलकर
अपनी प्रजातियों के साथ
और करना है अंत उन खरपतवारों का ।