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21 Nov 2024 · 1 min read

बिहारी बाबू

अखनो अखनो एहि धरती पर,
बोझिल भयले जीवन भार।
काहे से तों बिहारी बाबू,
झेले दुख केर अपार।

परदेशक रस्ता ताकि-झाकि,
सपना टूटल दिन राति ।
गामक माटि, पाइन,पोखरि,
सभ बनल,हियके अगिन।

परिजन दूर, संगती छूटल,
ममता कनहु सून पड़ल।
चुल्हा ठंढा, आँखि भरल,
धरती पर किछ मोन परल ।

कखनो ठेकवा, कखनो मज़दूर,
कखनो बाबू कहाइत भोजपात ।
पर छाती पर पाथर राखिकेँ,
सभ दरद सजीव सहाइत वानर।

अपन भाग्य लड़ाइत छिटघोपर।
धरती के बेटा, स्वाभिमान संग,
सभ दरर्दो गेले लगाइत विहार ।
काहे से हम बिहारी बाबू,

—श्रीहर्ष—

Language: Maithili
Tag: Poem
11 Views
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