बिल्लू की फुटबॉल
02• बिल्लू की फुटबॉल
हर इतवार बच्चे सुबह ही नाश्ते के बाद पास के पार्क में फुटबॉल खेलने पहुंच जाते ।पास ही सामने की झोपड़ी से बिल्लू देखा करता था ।कभी-कभी फुटबॉल झोपड़ी की ओर आती तो बहुत तेज वापस बच्चों के पास मार देता ।बच्चे उससे प्रभावित होकर उसे भी खिलाने लगे ।खेलता बहुत बढ़िया था बिल्लू।
बच्चे उसकी बिल्ली जैसी फूर्ती देखकर दंग रह जाते।
एक दिन खेल के बाद बच्चे घर जाने लगे तो बिल्लू उनके साथ न जाकर उदास मुद्रा में वहीं बैठा रहा ।बच्चे कुछ दूर जाकर बिल्लू के पास वापस आए। “क्या तुम घर नहीं जाओगे? उदास क्यों हो?कहीं चोट तो नहीं आयी?”, बच्चे तड़ातड़ कई सवाल दागे ।बिल्लू बिल्कुल चुप ।बहुत कुरेदने पर उसने बताया कि उसके पास कोई फुटबॉल नहीं है ।सभी बच्चे अपने खेलमित्र की बात सुन बहुत दुखी हुए ।उस समय उसे ढाढ़स बधाने के लिए बच्चों ने कहा, “तुम तो इतना अच्छा खेलते हो ।बड़े होकर बड़ा खिलाड़ी बनोगे और तुम्हें ढेरों फुटबॉल इनाम में मिलेंगे।”फिर बच्चे उसे समझा-बुझाकर घर भेज दिये।
दो हफ्ते बाद ही बिल्लू का जन्मदिन था।बातों-बातों में बच्चों को जब यह बात पता चली तो उन्होंने एक गुप्त योजना बना ली। और ऐन जन्मदिन की शाम जब अपने खेलमित्रों का झुंड बिल्लू को पहली बार अपनी झोपड़ी की ओर आता दिखा तो उसका सर चकराया ।सोचा, “इन्हें तो मैंने बुलाया भी नहीं था और आज इतवार भी नहीं है। सब विद्यालय भी गए होंगें।” तबतक बच्चा-टोली बिल्लू के पास पहुंच गई और बिना किसी भूमिका के ‘जन्मदिन की बधाई बिल्लू को’ का समवेत शोर मचाते एक ने एक बड़े झोले में हाथ डालकर एक जादूगर जैसा मंत्र पढ़ा और एक बड़ा-सा लाल फुटबॉल निकाल कर बिल्लू को उपहार दे दिया । बिल्लू की खुशी का ठिकाना न रहा ।आज जीवन में पहली बार उसे उपहार मिला था और वह भी उसकी सबसे प्रिय वस्तु फुटबॉल का।
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—-राजेंद्र प्रसाद गुप्ता।