बिरादरीवाद
ट्रेन में सफर के दौरान हमेशा की तरह अघोषित पंचायत शुरू हो चुकी थी। एक हाई प्रोफाइल अंतर जातीय शादी चर्चा का विषय बनी हुई थी। बातचीत के दौरान ट्रेन आउटर पर जाकर खड़ी हो गई। काफी देर से दो साल के एक बच्चे को तेज प्यास लग रही थी। बच्चा बार-बार रोए जा रहा था। यह बच्चा उस महिला का था जो बहुत देर से ऊंची और नीचे जातियों के बीच भेदभाव का समर्थन कर रही थी।
प्यास बढ़ने के साथ-साथ बच्चे के रोने की रफ्तार भी बढ़ती रही थी। इस बीच महिला की नजर मेरी पानी की बोतल पर पड़ी। उसने विनती भरी नजरों से मेरी तरफ देखा- “भइया! क्या आप की बोतल में पानी है?” ”हां है, लेकिन झूठा है।” मैंने जवाब दिया। इस पर महिला बोली ”अरे भइया, कोई बात नही,ं थोड़ा सा दे दो।” मैंने उसको बोतल पकड़ा दी। महिला ने अपने बच्चे को पानी पिला दिया। बच्चा शांत हो चुका था यानी उसकी प्यास बुझ चुकी थी।
कुछ देर चुप रहने के बाद आखिर मुझसे रहा नहीं गया। मैंने पूछ ही लिया बहन जी, बहुत देर से आप जातियों के बीच ऊंच-नीच का पैमाना तय कर रही थीं। अब आपने अपने बच्चे को पानी पिलाने से पहले मुझसे यह भी नहीं पूछा कि मेरी जाति कौन सी है? मैं ऊंची जाति का हूं मैं नीची जाति का।” इस पर महिला ने दो टूक जवाब दिया- ”भइया जात बिरादरी भरे पेट की बातें होती है।” महिला के जवाब से यह बात समझ में आ रही थी कि बिरादरीवाद कौन फैलाता है।
© अरशद रसूल