#बिन मौसम
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● मेरा इस जन्म में पचहत्तर वर्ष लांघ जाना लब्धि नहीं है वरन् ईशकृपा है और तन व मन का सामंजस्य बहुधा बिगड़े रहना समस्या नहीं गंभीर चूक है जिसके परिणामस्वरूप नियमित लेखन नहीं हो पाता।
अतः आपके दृष्टिपथ में बने रहने को यदाकदा पूर्वरचित रचनाएं यहाँ पुनर्प्रसारित किया करता हूँ। प्रस्तुत गीतिका भी राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र की सीमाओं पर अघटित घटनाओं को लक्ष्य कर २०२१ में रची गई थी।
आपकी आशीष का अभिलाषी हूँ।
१६-७-२०२३
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★ #बिन मौसम ★
गऊसुतहंता घर्र घर्र घर्र घर्राने लगा
हिंदहृदयस्थली ढिल्लिका कंपाने लगा
लालकोट पर धर्मध्वजा पाप हुई इक दिन
तंत्रमंत्रयंत्र भूला राजा लोरियां गाने लगा
ढीली होते होते ढिल्लिका दिल्ली हुई
चोरडाकू ठगलुटेरा गुंडीगुंडा नेताजी कहाने लगा
वो पांव तले जिसके धरती रही नहीं
चोर चोर चोर सब छोर गुंजाने लगा
वामीसमीर ने घर देख लिया रतनार हुई आंखें
दाता ख्यात जगत में था हत्यारा कहाने लगा
कुटपिट चुका मुंह मारते दूजे की नांद में
हरी की चाह में मरखन्ना बिन .मौसम रंभाने लगा
जाने कितने चूल्हे ठंडे हुए सांडों की भिडंत में
मानवता के महलकंगूरे भूमिपुत्र ढहाने लगा
समय आया घेराव ठहराव उच्चासन पंकभराव का
क्रीडांगन में सांझसवेरे नया खिलाड़ी आनेजाने लगा
किसका रंग हुआ धूमिल पता करें कुछ नया करें
नवसर्जनउत्साह मदिर समग्र चूल हिलाने लगा
तंत्रमंत्रयंत्र भूला राजा लोरियां गाने लगा . . . . . !
#वेदप्रकाश लाम्बा
यमुनानगर (हरियाणा)
९४६६०-१७३१२