बिन मौसम बरसात
बिन मौसम बरसात ने ,लिया कृषक की जान।
भींग गई सारी फसल,हुआ बहुत नुकसान।।
आफत बन कर आ गई, बिन मौसम बरसात।
उस पर ओले की कहर,फसलों पर आघात।।
बरस रहा जल चैत्र में,सावन की बौछार।
खेत बना है पोखरा,किया फसल बेकार।।
फसल रखी थी काट कर,हाय हुआ बर्बाद।
फूट-फूट रोया कृषक,भरा हृदय अवसाद।।
गेंहू सरसों बाजरा,सारी फसल तबाह।
फसल देख तड़पे कृषक,निकले मुख से आह।।
देख फसल की दुर्दशा,मन व्याकुल बेचैन।
देव-देव करता कृषक, करुण हृदय नम नैन।।
टूटी माला की तरह, फूटी किस्मत हाय।
मेहनत पर पानी फिरा,अब क्या करें उपाय।।
-लक्ष्मी सिंह
नई दिल्ली