बिन मुहूर्त ही जन्म ले , इस जग में इंसान।
बिन मुहूर्त ही जन्म ले , इस जग में इंसान।
बिन मुहूर्त ही पहुँचता , प्रतिदिन वह श्मशान।।
प्रतिदिन वह श्मशान , सोचता फिर भी ज्यादा ।
शुभ मुहूर्त की राह , खोजने पर आमादा ।
पाली सदा कुरीति , रहा वह सदा धूर्त ही ।
करें सदा शुभ कर्म , भले हों बिन मुहूर्त ही ।।
सतीश पाण्डेय