बिन फेरे हम तेरे
लघुकथा : बिन फेरे हम तेरे
बात तब की है जब शादी व्याहों में बारातें होती थी यानी वोह एक दिन
वाली नहीं जैसी आजकल होती है बाकायदा ३-४ दिन की होती थीं
द्वारचार शादी कच्चा खाना या भात कुँवर कलेवा शिष्टाचार और
तीसरे दिन बिदाई, बारात में नाते रिश्तेदार दोस्त नौकर चाकर
मोहल्लेवाले मिलाकर 150 से 250 तक लोग होते थे बारात बसों से
सड़कों तक फिर बैल गाड़ियों या अध्धों पर गाती बजाती चलती थी बड़ा
मजा आता था
हाँ तो जब मैं नवी कक्षा में पढता था और देखने सुनने में अच्छा
खासा दिखता था कसरती खिलाड़ी बदन और आकर्षक मुझे मेरे ममेरे
भाई क़ी शादी में बारात में जाने का अवसर मिला पक्की सड़क से कोई
5 किलोमीटर अंदर नदी किनारे वोह गाँव था हमें वहाँ के स्कूल में
जनवासा दिया गया पहुचने पर भव्य स्वागत हुवा एक तरफ
माँसाहारी और दूसरी तरफ शाकाहारी घड़ों में भर कर देशी शराब का
भी इंतजाम था जिसका बारातियों ने भरपूर मज़ा लिया
रात 10 बजे बारात द्वारचार हेतु वधु पक्ष के दरवाजे बाजे गाजे के
साथ नाचते गाते पहुची वहाँ भी भव्य स्वागत हुआ पूरा गाँव स्वागत
में लगा था द्वारचार ,शादी अगली दोपहर कच्चा भात ठीक ठाक
निपट गये सब अच्छा चल रहा था मैंने एक बात को नोटिस किया
वधु पक्ष की एक बड़ी बड़ी आखोंवाली सुंदर कन्या मेरी तरफ कुछ
ज्यादा ही आकर्षित हो रही थी कुछ न कुछ हरकत के साथ सामने आ
जाती पर मैंने ज्यादा ध्यान नहीं दिया
फिर शाम को कुँवर कलेवा हेतु बुलावा आया और हमारे दूल्हे भाई साहेब
के साथ हम 5 सह्बेले लोग भी साथ गये हमें शादी के मंडप के नीचे
बिठाया गया वहीँ पर दहेज़ का घरेलू सामान भी सजा था पलँग एल्मारी
ड्रेसिंग टेबल सोफा रेडियो बिजली का पंखा सभी कुछ मैं सोफे पर बैठा
था सामने ही ड्रेसिंग टेबल थी उसके शीशे में मुझे अपने पीछे का नज़ारा
साफ़ दिख रहा था वोह लड़की कई अन्य लड़कियों के साथ शरारतों में
लगी थी हसीं मजाक का दौर चल रहा था भैया कीसास जी आयीं उन्होंने
हमें टीका लगा कर दही पेडा खिलाया रुपया नेग दिया और भाई साहेब
को कलेवा खिलाने लगी हम सभी रस्मों का आनंद ले रहे थे कि अचानक
मैंने देखा कि वोह लड़की चुपचाप हाथ में सिदूर लेकर मेरी तरफ पीछे से
बढ़ रही है शायद उसका इरादा मेरी माँग में सिन्दूर भरने का था वोह
मुझे ड्रेसिंग टेबल के शीशे में साफ़ नज़र आ रही थी
मैंने उसे आने दिया.. पर ज्योंही वोह अपनी मुटठी सिन्दूर के साथ
मेरे सिर पर लायी.. पलक झपकते ही वोह मेरी गोद में आ .गिरी और
उसका हाथ पकड़ उसी का सिन्दूर उसी की माँग में भरपूर भरा जा चुका
था सब कुछ इतनी जल्दी में घटा कि कोई कुछ समझ पाता हंगामा हो
गया वोह लड़की किसी प्रकार उठकर अन्दर भाग गयी मैं आवाक सा था
मण्डप के नीचे कुवारी कन्या की माँग में सिन्दूर डालना कोई साधारण
बात नहीं थी गाँव का माहौल देखते ही देखते सैकड़ों की संख्या में गाँव
वाले इक्कठे हो गये हमारी तरफ के बड़े बूढ़े भी मिलनी की
रसम छोड़ वहां आ गये गाँववाले कह रहे थे जब माँग भर दी है तो फेरे
करा कर इनकी शादी करा दो पर दोनों पक्ष के समझदार लोग ये दोनों
बच्चे और नाबालिग हैं इसके खिलाफ थे खूब बहस मुबाहसा हुआ और
हमारी बारात अगले दिन बिदाई के बाद वापस रवाना हो गयी
बाद में हमारी नई भाभी ने मुझे बताया कि वोह लड़की उनके चाचा
की लड़की मीना थी और ग्वालियर शहर में आठवीं कक्षा में पढ़ती थी
जहाँ उसके पिता सरकारी डाक्टर थे वोह लड़की उस घटना के बाद बहुत
उदास हो गयी थी सदा रोती रहती थी मुझे मन ही मन उसने पति के
रूप में वरण कर लिया था मण्डप में माँग भरा जाना एक ऐसी घटना
थी जिसने उसके कोमल मन पर अमिट छाप छोडी थी जब जब भाभी से
मुलाकात होती वोह मेरे बारे में ज्यादा से ज्यादा जानने की कोशिश करती
मैं कैसा हूँ कहाँ पढता हूँ क्या मैं उसे याद करता हूँ अदि अदि एक दो
बार भाभी ने मुझे उसके द्वारा लिखे कुछ पत्र भी दिये जिसमे उसने
अपना दिल निकाल कर रख दिया था वोह मुझे पति मानती है जिंदगी भर
साथ साथ जीना और मरना चाहती है मैं एक सीधा सादा लड़का था क्या
उत्तर देता पर दिल से मैं भी उसे चाहनेलगा था…हम बिन फेरे ही एक
दूसरे के हो चुके थे यद्यपि आज के ज़माने के सम्पर्क साधन न होने से
हमारे बीच कोई सम्वाद नहीं था हाँ भाभी के माध्यम से हम एक दूसरे के
बारे में जानने को उत्सुक रहते थे पढाई समाप्त कर नौकरी में लग गया
तमाम शादी के प्रस्ताव आ रहे थे पर मेरे दिलोदिमाग में मीना ही छायी
थी मुझे वो ही पत्नी के रूप में स्वीकार थी मैंने भाभी के द्वारा सन्देश
भी भेजा और उन लोगों ने सहर्ष अपनी सहमति दी और शीघ्र हम सात
फेरों के पवित्र बन्धन में बंध गये
मुझे बहुत प्रसन्नता है कि मुझे मीना जैसी जीवन संगिनी मिली पर
हम तो बहुत पहिले ही मन मस्तिष्क से “बिन फेरे हम तेरे ” हो चुके थे
(समाप्त )