*बिना तुम्हारे घर के भीतर, अब केवल सन्नाटा है ((गीत)*
बिना तुम्हारे घर के भीतर, अब केवल सन्नाटा है ((गीत)
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बिना तुम्हारे घर के भीतर, अब केवल सन्नाटा है
1
एक डराती हुई शांति, घरभर में पूरे छाई है
देख-देख सूनी दीवारें, आती रोज रुलाई है
जीवन भर की पूॅंजी खोई, समझो इतना घाटा है
2
याद तुम्हारे हाथों की, पोती कर रही पकौड़ी है
अंतर्मन से हर पुकार पर, वह जो भागी-दौड़ी है
याद कर रही समय तुम्हारे, संग-साथ जो काटा है
3
कुछ खटपट-कुछ टोकाटाकी, अब किससे हो पाएगी
किसकी सख्त नसीहत, बन आदेशों-सी अब आएगी
जब से तुम सो गईं खिड़कियों, दरवाजों को पाटा है
बिना तुम्हारे घर के भीतर, अब केवल सन्नाटा है
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रचयिता: रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 9997615451