बिखरे अरमान
तृण तृण करके नीड़ बनाया,बना है कितना सोना ।
अरमानो को पंख लगे हैं महका कोना कोना ।।
दिन भर बैठी स्वेटर बुनती, कहीं बनाती टोपी ।
डाल दिया चंदन का पलना बाँध के रेशम डोरी ।।
घर आँगन को खूब सजाया लगे बड़ा सलोना ।
अरमानो के पंख लगे हैं महका कोना कोना ।।
दोनों मिलकर बातें करते सपनें रोज़ सजाये ।
फुदक-फुदक कर मैना रानी किस्मत पर हर्षाये ।।
अंडे सेती बड़े जतन से छोड़ के खाना पीना ।
अरमानो के पंख लगे हैं महका कोना कोना ।।
विधि का लेखा कौन पढेगा जो है विधि विधान ।
होने बाली अनहोनी से मैना है अनजान ।।
हवा का झोंका येसा आया बिखरा कोना कोना ।
अरमानो के पंख लगे हैं महका कोना कोना ।।
देखकर अपनी बरबादी को दोनों बहुत हैं रोए ।
दोनो देखे आसमान को हृदय बहुत अकुलाये ।।
मन की पीर बड़ी ही गहरी हो गया जो था होना ।
अरमानो के पंख लगे हैं महका कोना कोना ।।
उमेश मेहरा
गाडरवारा (मध्य प्रदेश )
9479611151