#बिखरी वचनकिरचें
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★ #बिखरी वचनकिरचें ★
सपनों के घरौंदे में पसरी हुई लाचारी
बिखरी वचनकिरचें आशाओं की ऐय्यारी
सपनों के घरौंदे में . . . . .
अनछुआ है मन अब भी निर्दयी त्रिकालों से
राहों की कहानी सुन मेरे पांवों के छालों से
सरल स्नेहिल दिनरातें हुईं सब गल्पाचारी
बिखरी वचनकिरचें आशाओं की ऐय्यारी
सपनों के घरौंदे में . . . . .
अनजान नगर में सब खोजें हैं कोई अपना
मैं खोज रहा मेरा जागीआँखों सपना
सदोषकाल में आसकिरन नहीं रही फलाहारी
बिखरी वचनकिरचें आशाओं की ऐय्यारी
सपनों के घरौंदे में . . . . .
चावों के चतुष्पथ पर झुलसी हुई फुलझड़ियाँ
मुस्कान से हँसने तक सब टूट गईं कड़ियाँ
प्रीतनगर का छौना भी कहलाता व्यभिचारी
बिखरी वचनकिरचें आशाओं की ऐय्यारी
सपनों के घरौंदे में . . . . .
कोई कहे तो मैं सुन लूं मैं नहीं जो कल बीता
हिरदे में तमस चाहे अभी नहीं वेदनरीता
प्रेमपंक से लथपथ तब भी मेधा की सरदारी
बिखरी वचनकिरचें आशाओं की ऐय्यारी
सपनों के घरौंदे में . . . . .
आ मिलके चलें साथी जिस ओर सवेरा है
छंदों में शेष है गंध अभी गीतों में कमेरा है
नवसर्जनलालनपालन जहाँ जगती आभारी
बिखरी वचनकिरचें आशाओं की ऐय्यारी
सपनों के घरौंदे में . . . . . !
#वेदप्रकाश लाम्बा
यमुनानगर (हरियाणा)
९४६६०१७३१२