“बिंदिया”
“आए हाय! पति तो इसका मर गया पर आज भी पता नहीं किसके नाम की ये बिंदिया लगाती है, यह कलमुँही है कलमुँही पता नहीं कहाँ-कहाँ मुँह काला करके आती है”, पड़ोसन ने ऊँचे स्वर में कहा।इतना सुनकर भी पूजा ने बड़ा धैर्य रखकर उसे कुछ ना कहा और चुपचाप अपने घर के अंदर चली गई।
पूजा के पति का देहांत जहरीली शराब पीने से हो गया था। उसके बाद उसे ससुराल में भी जगह ना मिली ना ही उसे उसके मायके वालों ने अपनाया। नौकरी तो पहले ही वह स्टाफ नर्स की करती थी। आज भी उसने यही सोचा कि मैं अपनी नौकरी के बल पर अपने बच्चों का पालन- पोषण कर लूँगी और उसने किराए के मकान में रहना शुरू कर दिया। परंतु लोगों के तानों और अलग-अलग किस्म की बातों से उसका जीवन दूभर हुआ पड़ा था।
धीरे-धीरे करके समय निकलता गया और बच्चे बड़े-बड़े एक पच्चीस वर्ष का और दूसरा छब्बीस वर्ष का हो गया। दोनों बच्चे पढ़-लिख कर अच्छी नौकरी पर भी लग गए। बच्चे भी समझते थे कि मेरी माँ ने हमारे लिए क्या बलिदान दिया है ? बहुत बार पूजा को रिश्तेदारों ने समझाया कि तुम दोबारा शादी कर लो परंतु पूजा नहीं मानी। उसने अपने बच्चों का पालन-पोषण करके उन्हें अच्छा जीवन देना ही उचित समझा। आखिर उसे अपनी मेहनत का फल मिल ही गया दो गबरू जवान बड़े-बड़े बेटों के रूप में। अब बच्चे भी अपनी मां की कुर्बानियों को समझने लगे।
एक दिन पूजा अपनी रिश्तेदारी में किसी शादी में गई तो वहाँ भी रिश्तेदारों के बीच में खुसर-फुसर शुरू हो गई। कितनी तैयार होकर आई है?? आखिर किसके नाम की बिंदिया आज भी लगाती है?? पूजा ने तंग आकर आखिर भरी सभा में उत्तर दे ही दिया,”कल को मैं अपने बच्चों की शादी करूँगी तो क्या मैं उनके नाम की बिंदिया नहीं लगा सकती??” “आज यह बिंदिया मेरे पति के नाम की नहीं बल्कि मेरी बच्चों के नाम की है।” “यह बिंदिया मेरे आत्म सम्मान की है और आत्म सम्मान से भरे जीवन मैंने खुद को और अपने बच्चों को दिया है।” इतना कहते ही वह फफक-फफक कर रोने लगी। उसकी इस बात से कितने सारे रिश्तेदारों के मुँह बंद हो गए थे। बस उसके भाल पर चमक रही थी सुर्ख लाल सी विश्वास और आत्मसम्मान से भरी बिंदिया।
✍माधुरी शर्मा ‘मधुर’
अंबाला हरियाणा।