बिंते-हव्वा (हव्वा की बेटी)
फूल भी हो
तुम आग भी हो
इश्क़ भी हो
तुम इंकलाब भी हो…
(१)
ख़ुद में एक
तुम सवाल भी हो
हर सवाल का
तुम ज़वाब भी हो…
(२)
कहां छोड़ूं
तुम्हें कहां पढ़ूं
ज़िंदगी भी हो
तुम किताब भी हो…
(३)
क़रीब आकर
तुम्हारे समझा
चुप्पी ही नहीं,
तुम आवाज़ भी हो…
(४)
बैठ जाओ तो
बस पिंजरा
उड़ जाओ तो
तुम परवाज़ भी हो…
(५)
जिस्म से हो
चाहे बंधन में
लेकिन सोच से
तुम आज़ाद भी हो…
(६)
इस बीमार
दुनिया के लिए
ऐ बिंते-हव्वा,
तुम इलाज़ भी हो…
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